________________
२. सत्य प्रकृतियों-१४७ तीर्थंकर प्रकृति १ घटाकर १४७ जानना ।
१४५ लम्घ्यपर्याप्नक नियंत्रों में लब्ध्यपर्याप्तक जीव मरकर देव और नार को नहीं बनता इसलिए देवायु पोर नरकायु मै २
ऊपर के १४७- प्रकृतियों में से घटाकर १४५ जानना । २८ संख्या-अनन्नानन्न तियंच जानना। २१. क्षेत्र-सवलोक जानना । ३० स्पान –यर्वनौक जानना । ३१ काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वचाल यादि तिघेच (इनरनिगोद) एक जीव को अपेक्षा श्रद्र भव में असंख्यात पुनल परावर्तन काल सक नियंच
ही चनना रहे। ३२ अन्तर–नाना जीवों को अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव की अपेक्षा तिर्यंच गति को बोड़कर झुद्र भवन नवतो (100) सागर कान तक तिर्मच
नही बने । यदि मान नहीं जाय नो पिरतिबंधों में (१०० सागर के दाद) पानाही परे। ३३ बाति (योनि)-६२ लाख (पृथ्वी काय ७ नाव, जल क्य नाख, अग्नि काय ७ लाख, वायुवाम ७ लाम्ब नित्यानिगोद लाख, इनरनिनोद ७ लाद,
मनस्पति १० नास्त्र, द्विन्द्रिय लाख, जान्द्रिव २ लाख, चतुरिन्दिय २ लाख, पंचान्द्रय ४ लाख, ये ६२ क्षाम्ब) जानना। २४ कुल-१३॥ नव कोटिकूल जानना
नोकाय-२२ लाख कोटि कुल,जनकाय । लाम्ब होटि कुत्र, अग्निकाय ३ लाव कोटि कन. वासुकायलाच कोटि मूल, वनस्पनिकाय २८ लाख कोटिकुल. द्विन्द्रिय नाब कोटि कल, नोन्द्रिय ८ लाख कोटि कुष, चतुरिन्द्रिम हलाख कोटि कृल. पंचेन्द्रिय ४३ लाख कोटि कुन वे सत्र १३ लात कोटि कुल जानना ।