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रागाहना जपन्य प्रचाहना धनागम के पगम्यानने भाग, पोर र समाना... गम हजार) को जानना विग ग्याम्या
की.न.१ मे 18 को दिलो) र प्रकृतिका–११७ बघ पाग्य १२० प्रतियो में 4 माहारक हिकनाकर पाये ३ पटाकर 3
१११ निवन्य पयाप्नक जिन ग्रीनार करके ?" : प्रा . नरक द्विक २ ये घटाकर ।
आनन।। १० नम्ध्य पर्याप्तक पचेन्द्रिय तिर्यत्र में नरकातिक २. नरकायु १, दव द्विक २. वायु १. वक्रियक द्विक २, ये ८ ऊपर के
१३ प्रनियों में से घटाकर १०६ जानना मा प्रकृया -103 उदय योग्य १२२ प्रकृनियों में में भरकदिक २, नरकायु, देवाद्विक २, देवायु १. मनुष्यढिक २, मनुष्यायु १,उच्च मात्र
१. बाहारकटिक २.तीयकर प्र० ११५ घटाकर १०७ प्रकृतियां जानना। र पंचेन्द्रिय निर्यचों में ऊपर के १०७ प्रतियों में से एकेन्द्रियादि जाति , पानप, माधारमा १, सुक्ष्म १. स्थावर .
ये ८ घटाकर ६१ जानना। १७ पंचेन्द्रिय पयन पुरुष वेदियों में ऊपर के प्रकुतियों में से स्त्रीवद १ अपर्याप्न ये घटाकर १७ जानना १६ स्ववेदो तियचों में ऊपर के प्रऋतियों में म पृरुप वेद १ नपुसंक बंदर घटाकर शेष५ में स्त्रीवेद । जोरकर
E६ जानना। लन्ध्य पर्याप्त नियंचों में-ज्ञानाबरणीय ५. दर्शनानरगोय ६, {महानिद्रा ३ पटाकर) वेदनीय २, मोहनीय २३, (स्त्री-पुरुष ये वेद घटाकर) तियचायु १, नाच गोत्र १. अंतराय ५, नामकर्म २८ (नियंच गति, एकेन्द्रिय जाति १, निर्माण १. मौदारिक द्विक २, त जस कारण शरीर २, हंडक संस्थान १, प्रमप्राप्तास्पादिका संहनन १, स्पादि । तिर्वच पन्यानपूर्वी. भगुरुलभु १, उपधात प्रातप १. माघारण १, सूक्ष्म १, स्थावर १, अपर्याप्त १, दुभंग १, स्थिर १, पस्थिर ,शुन १, शुभ १, अनादय १, अयशः कीर्ति १,ये २८) ये मत्र ७१ जानना। भोगभूमि तियचों में-ज्ञानादरणीय ५, दर्शनावरणीय ६ (महानिद्रा ३ वटाकर) वेदनीय २. मोहनीय २७ (नपुसक वेद को घटाकर) नियं चायु १. उच्च गोत्र १. अंतराय ५, नामकर्म ३२ (तिथंच गति १, पंचेन्द्रिय जाति १, निर्माण १, प्रौदारिवद्विक २, तेजस कारण शरीर २, वन वृषभ नाराच संहनन १, समचतुरस्रसंस्थान १, स्पर्शादि ४, निच गत्वानुपूर्वी, मगुरुलधु १, उपपात १, परघात १, उक्ट्रवास १. प्रवास्त बिहामा गनि १, प्रत्येक १, बादर १, त्रम १, पर्याप्ति १, मुभग !, म्बिर १, अस्थिर १, शुभ १, प्रशुभ १, मुस्वर १, पादेव १. याः कीति १, उपोत १, य ) ने यब ७ जानना ।