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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नम्बर १३
मयोगकेवलौ गुण स्थान
१४ | १ भंग पर्याप्त बल को नं०१८ देखो १४ का भंग
कोनं .१८दे
१४ का मंग को नं. १ देखो
२३ मात्र १४
भंग १मंग सायिक सम्वक्त्व १क्षामिक' १ का भंग को नं.१ के १४ का भंग को १४ का भग ही eH : देवन ज्ञान केंगल
नं०१८के मुबि जानना दर्शन १,धायिक लब्धि, मनुष्य गति १, शुक्ल ! लेश्या १, प्रसिद्धत्व १. जीवत्व १, भन्यत्व १. ये १४ भाद जानना
अवगाहना-कानं014 देखो। बंध प्रतियां-१ मानावेदनीय (यह भी उपचार से बंध) बानना । उस कृतियां-४० को नं. १२ के ५७ प्रकृतियों में से ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ६, (महानिद्रा ३ पटाकर ). प्रत्नराय ५ ये १६ घटाकर
मोर नोर्थकर प्रकृति जोड़कर अर्थात ५७-१-४११-४२ जागना। सत्य प्रकृतियां ..८५ का न - १२ के १०१ प्रकृतियों में से पानावरणीय ५ दर्शनावरगोय, अन्तराय", ये १६ वटाकर ५ जानना। मंख्या-(८६८५०२) पार लाख अड्यान हजार पांच मी दो जीव जानना । क्षेत्र-लोक का असंख्यातयां भाग प्रमाण कपाट समुद्घात को अपक्षः जानना और प्रतर ममुधारायें असंपात नोक प्रमाण जानना और लोक
पूरी नमुनपान में मचे लोक जानना । म्पशन-कार के क्षेत्र म्यान के मुजिब जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा मकान जानना । एक जीव को अपेक्षा मन्तह से देशोन कोटि पूर्व वर्ष तक जानना । मंचर-पन्तर नहीं है। आति (योनि) -के १४ लाख मनुष्य योनि जानना । लि --१४ लाख कोटि कुल मनुष्य की जानना ।