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सूचना १-यहा आहारक की अपेक्षा निवृत्ति पर्याप्ति ही होती है, लब्धि पर्यातक नहीं होती है। सूचना २-इस प्रमत्त गुण स्थान में प्रौदारिक कापयोग की अपेक्षा अपर्याप्त अवस्था नही होती परन्तु माहारक मिश्रकाय योग की अपेक्षा
अपर्याप्त प्रवस्था होती है। सामो० ३१-३१७) भूचना ३-पाहारककाय योग तथा स्त्री वेद नपुसक वेद के उदय में मनः पर्यय ज्ञान नहीं होता (देखो गाय का गा० ३२४) सूचना ४–यहां माहारक मिश्र कायरोग में परिहार वि० संयम नहीं होता । (देखो मो. क० गा० ३२४) पक्षाहना-प्रौदारिक शरीर को अपेक्षा ३॥ हाथ से लेकर ५२५ धनुष नक जानना। प्राहारक संजम शरीर को अपेक्षा एक हाथ जानना ।
विशेष लामाको० नं०१५ देखो। बंध प्रकृतिमा - ६३ को० न० ५ के ६७ प्रकृतियों में से प्रत्याख्यान कषाय ४ घटाकर ६३ प्रकृतियां जानना । सबय प्रतियां--८१ को० नं. ५ के ६७ प्रकृतियों में से प्रत्यास्थान कपास ४, तिर्यच गति , तियंच गयानृपूर्वी १ नीच गोत्र १, उचोत १ ये
-प्रकृतियो पटाकर पोर पाहारदिक २ जोड़कर मर्याद ७-८-७९ -८१ जानना। सस्व प्रकृतिया-१४६ चोंचे गुण स्थान को उपशम सम्यमत्व की अपेक्षा १४८ प्रकृतियों में से नरकायु १ भौर तियंचायु १ २ घटाकर १४६
जानना।
१३६ चौथे गुण स्थान को क्षायिक सम्यक्त्व की अपेक्षा १४१ प्रकृत्तियों में से नरकायु १ मौर तिथंचायु १२ घटाकर १५ बानना संहा-(५६३९८२०६) पांच करोड़ पानवे माख अठ्यानक हजार दो सौ छः के समान बानना । क्षेत्र लोक के मसंख्यात्तवें भाग प्रमाण जानना। स्पर्शन--लोक के असल्यान भाग प्रमाण जानना। कास नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय आनना । सूचना-वह भाव की अपेक्षा वर्णन है। पारीर की मुद्रा की अपेक्षा नहीं है। प्रमत प्रप्रमत्त भाव समय समय में बदलते रहते है।
अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा मन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा अन्तमुहूर्त से देशोन अर्घपुद्गल परावर्तन काल तक प्रबत्त भाव नहीं बन सके । जाति (योनि)-१४ लाख योनि जानना । कुल-१४ लाख काटिकुल मनुष्य के जानना।
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