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श्रात्मतत्व-विचार
महात्मा ने कहा - "माई | वह बात कहने लायक नहीं है, फिर भी तेरी इच्छा हो तो मुझे कह देने में कोई आपत्ति नहीं है ।'
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महेश्वरदत्त ने कहा- "मुझे जरूर बताइये |
महात्मा ने कहा – “हे माई । आज तू अपने पिता का श्राद्ध कर रहा है और उसके लिए तूने एक पाडे का वध किया है । वह पाड़ा स्वय तेरा पिता हैं । मरते वक्त दोर में वासना रह जाने से वह तेरे ही यहाँ पैदा हुआ था ।”
ये शब्द सुनते ही महेश्वरदत्त को कॅपकॅपी छूटने लगी और उसके दुःख का पार न रहा उसने कहा- हे प्रभो ! क्या यह बात सच्ची हे " महात्मा ने कहा- "हॉ, यह बात विच्कुल सच्ची है, पर वह यहीं नहीं खत्म हो जाती । तूने थोडी ढेर पहले लकड़ी के प्रहार से जिम कुतिया की कमर तोड़ दी, वह तेरी माता है । वह भी मरते वक्त मेरा घर, मेरे लडके, मेरा व्यवहार, यूँ मेरा मेरा करती हुई मरी, इसलिए इस हालत को पहुँची है
मरदत्त ने यह सुनकर कान पर हाथ रख लिए आगे उस महात्मा ने कहा--'हे भद्र | जब तूने बात सुनी ही है, तो उसे पूरी ही सुन ले | तृ जिम पुत्र को इतनी ममता से खिला रहा है, वह और कोई नहीं, तेरे डडे से मरण पाया हुआ तेरी स्त्री का यार है । अन्त समय चूंकि उसे सन्मति आ गयी, इसलिए उसने मनुष्य-गति प्राप्त की और अपने ही वीर्य में उत्पन्न हुआ
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ये शब्द सुनते ही महेश्वरदत्त को मसार पर विक्कार छूटा ओर उसने उसी क्षण उन महात्मा के चरणो पर अपना सिर रख कर विनती की"हे प्रभो ! मेरा इस असार संसार से उद्धार कीजिये ।' महात्मा ने उमे कल्याण का मार्ग बताया और उस मार्ग पर चलकर उसने अपनी आत्मा का कल्याण किया ।