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श्रात्मतत्व-विचार
पिता और माता का उत्तर कार्य हुआ, जाति के लोग जीमे, महेश्वरदत्त __ की आबरू बढी और ममार-व्यवहार की नाव आगे बढी ।
महेश्वरदत्त की पत्नी गागिला रूपवती थी, घरके काम-काज में बडी कुगल थी, पर विषयलम्पट थी-यह दुर्गुण इतना बड़ा है कि सब सद्गुणा को आवृत्त कर देता है । मो मन दूध का नावडा भरा हो, उसने जरा-सा मठ डाल दिया जाये तो उस दूध को आप कहेगे क्या ? सास-सुसर जब तक छाती पर थे तब-तक गागिला की विषयलम्पटता को अवकाया नहीं मिलता था । पर, अब तो वे रहे नहीं थे और महेश्वरदत्त को धधे-रोजगार के लिए अधिकांश समय बाहर रहना पड़ता था; इसलिए उससे विषयलम्पटता के लिए पूरा अवकाश मिल गया । वह पर पुरुष के साथ प्रेम में पड गयी।
पर, पाप का घडा फूटे बिना नहीं रहता । एक दिन किसी कार्यवा महेश्वरदत्त को यकायक घर आना पडा, तो अन्दर का दरवाजा बन्द देखा । इससे उसे शक हुआ। दरवाजे की दरार में से देखा तो अन्दर कोई पुरुष दीखा । जब एक जानवर भी अपनी माटा के साथ दूसरे जानवर को नहीं देख मकता, तो मनुष्य कैसे देख सकता है ? उसने आवाज दी “गागिला । दरवाजा खोल !"
आवाज सुनते ही गागिला के होश उड़ गये । उसने अपने प्रेमी को, छिपा देने का विचार किया; पर वहाँ छिपाने योग्य कोई जगह थी नहीं, इमलिए लाचार होकर दरवाजा खोल दिया और मय से थर-थर कापती हुई एक तरफ खड़ी रही, जैसे हवा से कॉपता पीपल का पत्ता !
महेहवरदत्त ने कमरे में प्रविष्ट होते ही गागिला के यार की गरदन पकडी और उमे डडे से पीटने लगा। पेड, पर एक प्रहार ऐसा पडा कि उमका गम ग्म गया ! लेकिन, उस वक्त मरने वाले को इतनी सन्मति
आपी कि 'मेरे कर्म का फल मुझे मिला है । इसमें दूसरे पर क्रोध क्यों किया जाये ?” मरण समय की दम सन्मति के कारण उसे मनुष्य का भर मिला