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दशम अध्याय ....
- सब बेकार हो जाते हैं, एक माटी के ढेले के रूप में परिवर्तित हो जाते....
है। घड़ी तभी तक चलती है, जब तक उसमें चाबी है, यदि चाबी समाप्त हो जाए तो उसके सब पुर्जे भले ही निर्विकार और निर्दोष . क्यों न हों, किन्तु सब बेकार, निष्क्रिय हो जाते हैं। इसी प्रकार जीवन रूपी घड़ी में आयु भी चाबो के समान है । इसके समाप्त होते ही
जीवन की घड़ी भी निचेष्ट और निष्क्रिय हो जाती है, सदा के लिए . : खड़ी हो जाती है, उसमें किञ्चित् भी स्पन्दन नहीं होने पाता । आयु . - की शक्ति एक विलक्षण और सर्व-प्रिय शक्ति है। इसका वियोग कोई.. .. - नहीं चाहता, भले ही कोई राजा हो या रंक, सुखी हो या दुःखी, कोई ...भी क्यों न हो,किसी भी दशा में इसका वियोग कोई पसन्द नहीं .
करता है, संसार के छोटे-बड़े सभी जीव इस शक्ति से प्यार करते हैं और सर्वस्व देकर भी उसकी सुरक्षा चाहते हैं । ऐसी अनमोल और अलभ्य आयु-शक्ति को समाप्त कर देना घोरातिघोर पाप है।
आत्मा इन दस प्राणों से शरीर में जीवित रहती है,अपनी सभी क्रियाएं सम्पन्न करती है। ये दस प्राण प्रात्मा की विभूति हैं, सर्वस्व
हैं, इन्हें लूट लेना, समाप्त कर देना ही आत्मा का मरण कहा जाता . . है । इसके अलावा, जैन दर्शन आत्मा को एकांत रूप से अजर, अमर
भी स्वीकार नहीं करता । उसका कहना है कि आत्मत्व की दृष्टि से - भले ही आत्मा अजर, अमर है, किन्तु प्राणों की दृष्टि से वह विनाशशील है। प्राणों के नष्ट होते ही आत्मा भी नष्ट हो जाती है, शरीर से पृथक् हो जाती है। अतः आत्मा को कथंचित् अमर मान लेने पर भी पुण्य-पाप की मान्यता सत्य ही रहती है, उसमें कोई अंन्तर नहीं पड़ता। आत्मा की प्राण शक्ति को नुक्सान पहुंचाने पर पाप होता है, और उसकी सुरक्षा करने पर पुण्य का लाभ होता है। प्रश्न- यदि बकरा आदि पशुओं को काम में न लाया जावे,
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