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ये जो बच्चे हैं बल्लालदेव, छोटे बिट्टिदेव, विनयादिय और हरियलदेवी उनका भी भविष्य सुरक्षित होना चाहिए न ? वह संघर्ष शुरू हो जाए तो राजद्रण की तरह फैलता ही जाएगा; और तब वह एक ऐसा बाव होगा जो कभी नहीं भरेगा। पट्टमहादेवी बनकर हमारी अम्माजी 'तिगन्धवारणा' को उपाधि ही हुई हैं, तु सदा शान्ति चाहने वाली अम्माजी यदि कल यह कहें कि हमारे बच्चों को सिंहासन न भी मिले तो कोई हानि नहीं, तो इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं। बड़े हेग्गड़ेजी हैं, हेगड़तीजी भी हैं। बड़ी रानियाँ, आप भी हैं। इन अम्माजी से अब आगे ऐसी गलती न हो और इन बच्चों के प्रति अन्याय न हो, इस बात का वचन लें। इतनी कृपा करें ।" वह बहुत विचलित हो गया था। भावुकता वश वह यह सब अनायास ही कह गया।
शान्तलदेवी हँस पड़ीं।
"क्यों अम्माजी, क्या मेरी बातें हँसी में उड़ा देने की हैं ?"
"रेविमय्या, तुम अपनी खास दृष्टि से सोच रहे हो। तुम्हारे लिए मैं और मेरे बच्चे ही सारा संसार हैं। इसलिए कहीं थोड़ी सी भी शंका पैदा हो जाए तो तुम सोचने लगते हो कि उससे मेरी बड़ी हानि होगी और उसे लेकर आशंकित हो। इसलिए व्यापक दृष्टि से विचार किया जाए तो ये तुम्हारी बातें हँसी-सी लगती हैं। यहाँ मेरे माता-पिता मौजूद हैं। उन्होंने या मैंने कभी नहीं सोचा था कि हमारा सम्बन्ध राजमहल से होगा। यह बात हमारी कल्पना में भी नहीं आयी थी, न इसकी आशा ही की थी । परन्तु पता नहीं, तुम्हारी अभिलाषा थी या गोम्मट स्वामी की करुणा थी, अथवा मेरे पिताजी के इष्टदेव धर्मेश्वर का वरप्रसाद था कि मुझे यह स्थान, मान और गौरव प्राप्त हुआ । इस पर मुझे घमण्ड नहीं करना चाहिए। न ही मुझे किसी तरह से भी हट करना चाहिए कि यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार हैं। अलभ्य का लाभ मुझे जब मिला है, तो मेरे बच्चों को जो लभ्य होना चाहिए वह लभ्य न होगा, इस तरह की शंका तुम्हारे मन में क्यों आयी ? कोई आशंका तुम्हारे भीतर बैठ गयी है। यह सब छोड़ दी। सन्निधान कभी अपनी सन्तान के प्रति अन्याय नहीं करेंगे। इसलिए इस सम्बन्ध में तुम चिन्ता मत करो। तुम जैसे प्रिय लोगों को पाने वाले पोय्सल राज्य में अन्याय नहीं होगा।" शान्तलदेवी ने कहा ।
"हाथ की सभी अँगुलियाँ बराबर नहीं होतीं, अम्माजी।"
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'उसके लिए तुम्हारी क्या सलाह है ?"
"सीतों से कोई कष्ट न हो, इसके लिए कुछ करना होगा।"
पद्मलदेवी, चामलदेखी और बोपिदेवी, तीनों हँस पड़ीं। पालदेवी ने कहा, "रेनिमय्या ! तुम भी अच्छे हो ! अब तक तो हमने समझा था कि तुम बुद्धिमान् और होशियार हो, परन्तु तुम्हारी बातों को सुनने के बाद पता नहीं लगता कि तुम्हें क्या कहें।
52:: पट्टमहादेवी शान्ता भाग चार