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"उनके हुक्म का पालन मेरा कर्तव्य है।"
इस प्रकार शहजादी ने शान्तलदेवी से भेंट की। कुशल प्रश्न के बाद शान्तलदेवी ने कहा, "वास्तव में इस तरफ आने की बात मैंने सोची ही नहीं थी। लेकिन आपके इतनी दूर दक्षिण में पधारने की बात सुनकर आपसे मिलने की इच्छा हो आयी।"
"पट्टमहादेवीजी की उदारता की बड़ाई आचार्यजी ने मुझसे की है।"
"उनका स्वभाव ही ऐसा है। छोटी बात को भी महान बना देते हैं। आचार्यजी ने रामप्रिय पर आपकी अपार भक्ति के बारे में मुझे बताया है। परन्तु मेरे मन में एक प्रश्न उमड़ रहा है। आपको ही उसका समाधान करना होगा।" ।
___ "हर किसी सवाल का जवाब देने की अक्ल मुझमें कहाँ? जो कुछ मैंने जानासमझा है, वह सब सुनी-सुनायो बातें हैं। मैंने खुद कोई शिक्षा नहीं पायी है, इसलिए आपको निराशा ही होगी।" . "शिक्षा अनुभव से बड़ी नहीं। शिक्षा केवल अनुभव को ओपोदी है। आप जन्मतः अल्लाह की अनुयायी हैं। अल्लाह के अनुयायियों के लिए भारतीय धर्मी काफिर हैं। इन काफिरों के इस रामप्रिय पर किस कारण से रीझ गयी हैं और भक्तिन बन गयी हैं, यह मैं समझ नहीं पा रही हूँ।"
"हमारे यहाँ भी यही कहते हैं। पूछते हैं कि अल्लाह की अनुयायिनी होकर काफिरों के देव से क्यों प्रेम करती हो। मैं नहीं जानती हूँ। यह रामप्रिय खिलौना बनकर मेरी गोदी में सोता रहा। लोहे की इस बेजान मूर्ति के प्रति जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई, एक सरह की मोहकता का अनुभव करने लगी। उसका संग मुझे अच्छा लगने लगा। अब उसके अभाव में सब सूना-सूना लग रहा था। उस तरह का जीवन मेरे लिए असाय हो उठा। मेरा अन्तर बार-बार कहने लगा कि मेरा सुख-साक्षात्कार केवल इस रामप्रिय से ही साध्य हो सकता है। इस सुख-साक्षात्कार को पाना किसी और से हो ही नहीं सकता। ऐसी हालत में मेरा समप्रिय की भक्तिन बन जाना सहज ही है न?"
"तो क्या आपको यह मान्यता है कि अल्लाह से यह रामप्रिय श्रेष्ठ है?"
"अल्लाह से मैंने कुछ नहीं चाहा। मेरे मन में उसके स्वरूप की कल्पना ही नहीं हुई है। मेरी नस-नस में रामप्रिय ही विराज रहा है। अब तो मेरे लिए वही एक रामप्रिय है। इसका यह मतलब नहीं कि वह दूसरों से बढ़कर है।"
"देखा न? अनुभव ने बड़े तत्त्वज्ञों से अधिक ज्ञानी बना दिया है आपको। तो आपने यह समझकर उसका अनुसरण नहीं किया कि रामप्रिय अन्य सभी से श्रेष्ठ है।"
"मुझे प्रिय लगा, बस हो गयी उसी की। यह दूसरों के लिए समस्या बन सकता है। एक मत या धर्म की अनुयायिनी किसी अन्य मत या धर्म की अनुयायिनी बन सकती है या नहीं, यह बात मेरे दिमाग में आयी ही नहीं। रामप्रिय के सान्निध्य से मेरा मन इतना प्रसन्न क्यों हुआ, यह ऐसा विषय है जो स्वयं मेरी ही समझ में नहीं आता।
पट्टमहादेत्री शान्तला : भाग भार :: 177