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वास्तव में रानी या उसके पिता को यदुगिरि में कोई काम नहीं था। रेविमय्या साथ था, इसलिए यदुगिरि जाना ही पड़ा। और वहाँ चार दिन रहना भी पड़ा।
पट्टमहादेवी ने सारी बातें रेविमय्या को समझा दी थी। इसलिए उसे गूंगे बैला की तरह आदेशानुसार चुपचाप काम करना मात्र था, कुछ कहना-सुनना नहीं था। फिर भी वह हमेशा सतर्क रहता था।
यदुगिरि पहुंचने पर आचार्यजी से भेंट हुई। कुशल-प्रश्न के बाद आचार्यजी ने कहा, "गर्भवती स्त्रियों की कई तरह की लौकिक वांछाएँ हुआ करती हैं । तुमको एक संन्यासी से मिलने की अभिलाषा हुई. यह तो आश्चर्य की बात है!"
रानी कुछ नहीं बोली। तिरुवरंगदास ने ही उसकी तरफ से जवाब दिया, "उसका सारा जीवन आचार्यजी के कृपापूर्ण आशीर्वाद से ही फला-फूला है।" उसकी इच्छा है कि वह ऐसे राजकुमार की माँ बने जो आचार्यजी के धर्म का पोषक हो। इसलिए अनुग्रह पाने आयी है।"
"दास | तुम्हारी बात सुनकर अभिलाषा तुम्हारी है या उसकी, यह मालूम नहीं हो रहा है।" आचार्यजी बोले। __ "उसी की अभिलाषा है।"
"देखो दास! हमारे धर्म का पोषण करना हो तो उसका अध्ययन करना और उसके लिए सर्वस्व त्याग करना होता है। ऐसा व्यक्ति राजकुमार होगा कैसे? लक्ष्मी अब रानी है । वह जिसे जन्म देगी, वह राजवंश की सन्तान होगी। फिर लड़की हो या लड़का, यह कौन कह सकता हैं ? यह सब भगवान् की इच्छा है।"
"श्री आचार्यजी का अनुग्रह होगा तो भगवान् भी अनुग्रह करेंगे।" बीच में लक्ष्मीदेवी ने धीरे से कहा।
श्री आचार्यजी ने कहा, "देखो लक्ष्मी, तुमने अब अपने व्यक्तित्व को एक रूप में ढाल लिया है। जिस घर में तुम प्रविष्ट हुई हो वह बहुत ही श्रेष्ठ घराना है। वहाँ का वातावरण भी बहुत परिशुद्ध है। उसे आत्मसात् कर अपने जीवन को ढालो। दूसरों की बातों में आकर उनके कहे अनुसार नहीं करना चाहिए। भगवान् जो देगा उसी से सन्तुष्ट होना चाहिए। ऐसी मांग नहीं करनी चाहिए कि अमुक फल ही दे।"
कुछ धीरज के साथ लक्ष्मीदेवी ने पूछा, "आचार्यजी मुझपर पहले से ही अनुग्रह करते आये हैं। माँ बननेवाली प्रत्येक स्त्री की यही अभिलाषा होती है कि प्रथम सन्तान पुत्र हो। ऐसा अनुग्रह करेंगे तो क्या गलती होगी?"
आचार्यजी ने कहा, "प्रत्येक मानव, पता नहीं, अपनी क्या-क्या इच्छाएं सफल बनाने के लिए भगवान् से प्रार्थना करता है। भगवान् प्रार्थना करने की मनाही नहीं करता। परन्तु यह कहा नहीं जा सकता कि सबको सभी इच्छाओं को वह पूर्ण करता है। उसका पूर्व निर्णय जो होगा उसी के अनुसार सब होता है। इच्छा के अनुसार हो
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 207