________________
कारण न होने पर मैं या सन्निधान किसी को बुलवाते हैं?"
___ "उस विशेष की जानकारी न हो, इसलिए उस समय मुझे अवकाश नहीं दिया। पाँ, मैं सभी बातें जानने लायक कब होऊँगा?"
"होगे, उसके योग्य समय आएगा, तब । एक-एक विषय को समझते जाना चाहिए। सभी बातों को एक साथ निगलना ठीक नहीं। एक-एक कौर को चबा कर क्यों खाते हैं?''
"अन्न-रस अच्छी तरह रक्तगत होकर शक्तिवर्धन करे, इसलिए ।"
"विषय संग्रह-कार्य भी वैसा ही होना चाहिए, अप्पाजी। बिना चबाये निगलने पर वह हजम न होगा और बदहजमी हो जाएगी। इसी तरह ज्ञेय बातें भी धीरे-धीरे एक सिलसिले से परिमित परिमाण में दिमाग में लाना चाहिए। एकदम दूंसने पर दिमाग में कुछ भी नहीं रहता। सो भी तुम्हारी इस छोटी आयु में तुम्हारे दिमाग पर अधिक बोझ लादना ठीक नहीं।"
''अपने लिए एक रोति, दूसरों के लिए कुछ और?" ''ऐसे क्या हुआ है?"
"सुना है कि जब तुम मुझसे भी छोटी थी तभी अपने से दुगुनी आयुवालों से भी अधिक विद्या सीख ली थी तुमने। कितनी सारी बातें जानती थीं!"
"हो सकता है, अप्पाजी। अधिक से अधिक जानने का कुतूहल मुझमें था। मेरे माता पिता है, मैं चाहा, वह सीखने के लिए सारी व्यवस्था कर रखी थी।"
"ऐसे माँ-बाप की पुत्री होकर तुम...''
"उस अपने अनुभव के कारण ही मैं तुम लोगों को विषय-वस्तु की सीमाओं को ध्यान में रखकर पढ़ाती हूँ। एक विशेष बात तमको जान रखना चाहिए, अप्पाजी। तुम्हें मालूम है कि हमारे घर में चालुक्य पिरियरसी चन्दलदेवी अज्ञातवास में रहीं। मेरे माता-पिता जानते थे कि वे पिरियरसी हैं। फिर भी उन्होंने इस बात का भान तक किसी को न होने दिया। मुझे भी नहीं। इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें मुझ पर विश्वास नहीं था। संयम हर उम्र में अपने-अपने स्तर का होता है। इसलिए कुछ बातों को हम सभी से नहीं कहा जाता था। कुछ बातों से मतलब राजमहल के काम-काज से सम्बद्ध बातें । तुम्हें जो बताना होता है यह सब तो हम बता ही देते हैं। तो समझना चाहिए कि न बताने का कोई कारण है। कुरेद-कुरेदकर उसे जानने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। समझे!"
विनयादित्य ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाया। फिर बिना कुछ बातचीत किये दोनों भोजन समाप्त करके अपने-अपने विश्रामागार में चले गये।
शान्तलदेवी अपने विश्रामागार में एक आरामकुर्सी पर जा बैठीं। उनके मन की गहराई में दवी अपनी हत्या की वह बात फिर तर आयी, 'हत्या की यह खबर तलकाडु
294 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार