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"मुझे यह प्रतीत नहीं हो रहा है कि यहाँ उनकी जरूरत है। यदि सन्निधान की इच्छा हो तो बुला लूँ?' हुल्लमय्या ने कहा।
"इस तरह के पामलों में मुझे किस तरह व्यवहार करना होगा, मैं क्या जान? इसलिए आपको जो ठीक लगे, वही करें।" रानो लक्ष्मीदेवी ने कहा।
पहेली बन गयी थी। इस समस्या का पर्यवसान क्या होगा, यह कल्पना भी नहीं कर सकता था मायण। वह कुतूहलपूर्ण आतंक से सोचने लगा कि शायद बात सारे राज्य से सम्बन्धित होगी या फिर रानी के मन में बैठो हुई वही धुन होगी जिसके कारण मुझे बुलाया गया है। यही सोचता हुआ पायण मौन बैठा रहा।
___हुल्लमय्या ने वहाँ के नौकर को इशारे से बुलाया और उसके कान में कुछ कहा। नौकर वहाँ से चला गया।
"हमने एक परदे से ढंकी गाड़ी के लोगों को गिरफ्तार किया है। सुना है कि वे परसों मुडुकुतोरे के बाजार में दलबद्ध होकर लोगों को उकसाते फिर रहे थे। वे रानी पर और उनके धर्म पर लोगों को छेड़कर उन्हें उकसा रहे थे । हमारे गुप्तचर उनके दल में शामिल हुए। बाजार के निकट एक वृक्ष-कुंज है। वहां दस बारह लोग बैठकर बातचीत कर रहे थे। सुना कि ये हमारे खुफिये, वहीं जा बैठे । लोग एक एक कर आते रहे। दो खेल दिखानेवाले भी थे जो उन्हें एक-एक करके इस टोली की तरफ भेज रहे थे! इन खेल दिखानेत्रानों करने पर कम गुणा सी वहाँ गये। वहाँ उन खेल दिखानेवालों पर निगरानी रखे रहने की व्यवस्था करने के बाद ही हमारे गुप्तचर वहाँ गये थे। उन सभी को गिरफ्तार कर लिया लाये। सबको एक साथ गिरफ्तार करने के इरादे से, किसी को खबर दिये बिना जब वे परदेवाली गाड़ी में पूरिंगाली की तरफ रवाना हो रहे थे, हमने उन्हें हिरासत में ले लेने की व्यवस्था की थी। अब वे सब यहाँ लाये गये हैं। तहकीकात करने के लिए उन्हें राजधानी भेजना है या उन्हें यहीं दण्ड दिया जाए, इसका निश्चय अब सन्निधान (रानीजी) के सामने किया जाना है । परन्तु जिनके बारे में आपने कहा, ये आये क्यों नहीं, यह एक रहस्य हो बना है। फिर भी इतना कह सकते हैं कि वे हमारी सीमा से बाहर नहीं गये । जैसा पहले ही बताया था, हमारी सीमाएँ सुरक्षित हैं । जब से यह युद्ध शुरू हुआ है, तब से अनाज तथा और भी चीजें अन्यत्र न जाएं, ऐसी आज्ञा राजधानी से मिली है। तब से कर उगाही आदि का काम भी बड़ी चुस्ती के साथ चला है। अब हमारी पकड़ में जो लोग हैं, उनमें कुछ को आप जानते हैं, यह भी हमारा विचार है। यदि ऐसा हो तो विषय की जानकारी, उसकी गम्भीरता और उसका मूल आदि जानने में मदद भी मिल सकती है।" एक साँस में ही यह सब हुल्लमथ्या कह गया।
हुल्लमय्या की बातें सुनकर मायण जरा भी विचलित नहीं हुआ। फिर गम्भीर होकर बोला, "हमें सत्य मार्ग को छोड़ अन्यत्र जाने की शिक्षा मिली ही नहीं। झूठ
314 :: पट्टमहादेवा शन्तला : भाग चार