Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 426
________________ करने में सहायक अनेक पवित्र स्थान हैं इस देश में। एक बार उन सभी स्थानों का दर्शन कर उन पुरानी बातों को एक बार फिर नया रूप देकर लौटने के बाद, मानव-कल्याण के लिए आवश्यक एक ज्ञाननिलय का संचालन करूँ तो वही पर्याप्त है। मुक्त होने की इच्छा प्रबल रहेगी तो मानसिक शान्ति भी बनी रहेगी'।' शान्तलदेवी ने इस तरह जब दृढ़ निश्चय किया तब कहीं शान्ति के लिए मनोभूमि बन सकी और इसके फलस्वरूप अन्य कार्यों में भी उनका ध्यान जाने लगा। न्यायपीठ ने मुद्दला के हत्यारों पर न्याय-विचार किया। यह बात प्रकट हुई कि किसी वन देकर हत्या करवायी। जिसकी हत्या हुई उसके साथ हत्यारों का न कोई सम्बन्ध था न द्वेष था। केवल पैसे के लालच से हत्या की गयी, यह बात स्पष्ट हो गयी। इस हत्या के प्रेरक कौन थे, उसके सूत्रधार कौन थे, यह ज्ञात नहीं हो सका। हत्यारे को धन देनेवालों का चेहरा मोहरा और उनकी काठी का विवरण मिलने पर भी उन व्यक्तियों का पता नहीं लग पाया। वह एक तिलकधारी था, इतना ही स्पष्ट हो सका। वे हत्यारे भी पोय्सल राज्य के लोग नहीं थे, चोल राज्य के थे वे। मुद्दला राजमहल से सम्बद्ध थी और बहुत गहराई तक के रहस्य वह जानती थी। यदि वे उसके द्वारा प्रकट हो जाएँ तो राज्य में बड़ी गड़बड़ी हो जाएगी, इसलिए हत्यारों से कहकर यह काम करवाया गया, और इसके लिए उन्हें दो सौ स्वर्ण मुद्राएँ दो गर्यो । हत्यारे जब राज्य से बाहर निकलने लगे तो वहाँ के सीमारक्षक अधिकारियों ने उन्हे रोक लिया था। राज्य के सभी सीमारक्षक अधिकारियों के पास खबर भेजी जा चुकी थी। शंकास्पद आचरण न होने पर भी इन हत्यारों के पास पोय्सल राज्य मुद्रांकित स्वर्ण मुद्राएँ कैसे पहुँचीं, इसका ब्यौरा वे नहीं दे सके थे। वे सौदा सुलफ का बहाना करके खिसक जाना चाहते थे, परन्तु उन लोगों के सामान की जाँच करने पर उनके पास रानी लक्ष्मीदेवी के नाम से अंकित अँगूठी मिली। अधिकारियों को शंका हुई तो उन्हें रोक लिया गया और फिर पटवारी के हाथ सौंप दिया गया। बाद में गुप्तचर विभाग ने उन लोगों से मिलकर बहुत-सी और बातों का भी पता लगा लिया। परन्तु जब उन लोगों को यन्त्रणापूर्ण दण्ड दिया गया तब कहीं इस सत्य बात का पता लग पाया कि रानी लक्ष्मीदेवी की मुद्रांकित अँगूठी मुद्दला की अंगुली से निकाल ली गयी थी । कुछ आधार- सामग्री भी मिल गयी थी। लेकिन तब तक इस तरह के कार्य के लिए प्रेरणा देनेवाले व्यक्ति खिसक गये थे। न्यायपीठ ने इन हत्यारों को आजीवन कारावास का दण्ड दिया। 430 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार

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