Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 446
________________ शारदा की स्थापना होने तक मैं यहाँ रहूँगी। शायद तब तक सन्निधान भी आ जाएंगे। एक और पत्र वहाँ लिख भेजूंगी।" "जो आज्ञा।" जकणाचार्य ने इस निर्णय के बाद व्यर्थ समय नहीं बिताया। तुरन्त डंकण को भेजकर शिल्पियों को बुलवाया। लोगों को आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए भेज दिया। शान्सलदेवी ने एक पत्रवाहक को भेजकर बेलुगोल से कवि बोकिमय्या को भी बुलवा भेजा। वह एक ही पखवाड़े के अन्दर शिवगंगा आ पहुँचे। यहाँ के अध्ययन केन्द्र में किन-किन बातों का शिक्षण हो, इस पर विचारविनिमय हुआ और तदनुसार एक योजना भी बनी। शिवरात्रि के लिए जो भक्तवृन्द आये थे वे सब लौट गये थे । शान्तलदेवी ने कहा था कि शारदा के प्रतिष्ठा-समारोह के लिए व्यापक रूप से निमन्त्रण न भेजें । इसलिए इस दशा में विशष प्रचार नहीं लाया गया था। वहाँ के अध्ययन केन्द्र एवं शारदा-मन्दिर की प्रतिष्ठा के कार्य में जिन सबका सहयोग रहा, उन्हें निमन्त्रण भेजा गया और कहा गया कि लोग सीमित संख्या में ही आएँ। फिर भी बात फैल जाने के कारण आशा से अधिक संख्या में लोग एकत्र हुए। निश्चित मुहूर्त में शारदा की स्थापना हो गयी। फिर भी तब तक महाराज बिट्टिदेव नहीं आये। प्रतिष्ठा के दूसरे दिन भी बड़ी धूम-धाम के साथ पूजा-अर्चना सम्पन्न हुई। पश्चात् भोजन आदि भी हुआ। इसके पश्चात् बुधवार के दिन बहुत से लोग वहाँ से चले गये। पंचमी गुरुवार के दिन भोजन के पश्चात् बाकी सब लोग भी चले गये। शिवरात्रि के समारोह के अवसर पर उपस्थित न हो सकने पर भी सिंगिमय्या और सिरियादेवी शारदा-प्रतिष्ठा के समारम्भ के लिए आ पहुंचे थे। इधर महाराज बिट्टिदेव की प्रतीक्षा में शान्तलदेवी की आँखें थक गयो थीं। पर उनके न आने के कारण किसी भी कार्य को रोका नहीं जा सकता था। वास्तव में धर्मदशी ने पूछा भी कि, "सन्निधान की प्रतीक्षा की जाय? भले ही प्रतिष्ठा के लिए दूसरा दिन तय कर लें।" शान्तलदेवी ने अपना निर्णय सुना दिया था, "वहाँ क्या असुविधा हुई है, यह यहाँ बैठकर हम कैसे कह सकते हैं! निश्चित कार्य निश्चित समय पर सम्पन्न हो जाना चाहिए । यहाँ उपस्थित इतने लोगों को प्रतीक्षा में रखना उचित नहीं होगा। इसलिए सभी कार्य नियोजित रीति से चलते रहें। शायद-प्रतिष्ठा-महोत्सव में भाग लेने का सौभाग्य उनके भाग्य में न होगा। हम सब कालगति के नियम के अधीन हैं न? वहाँ से बुलावा आए तो यहाँ रहनेवालों की प्रतीक्षा करते बैठे रहना हो सकता है? जिस कार्य को करना है, या जिसे होना है. वह चाहे कोई आए या न आए, नियत समय पर हो जाना ही चाहिए।" 4503 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार

Loading...

Page Navigation
1 ... 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458