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क्यों नहीं प्राप्त हुआ? क्यों नहीं आय वे? अर्हन, वे जहाँ भी हों, मेरे लिए उनकी रक्षा कगे।...रेविमय्या कहाँ हो?"
रेविमय्या तुरन्न सामने उपस्थित हुआ।
शान्तलदेवी ने उसे देखा । फिर उठ खड़ी हुई, अपने-माँ-बाप को प्रणाम किया। फिर पूछा, "ऐ चट्टला! बल्लू कहाँ है ?"चट्टला उसे पकड़ लायी। वह कुछ दूर पर लटू खेल रहा था। उसे छाती से लगाया और आशीष दिया, "सौ साल जिओ, तुम्हारे माँ-बाप ने बहुत कष्ट झेला है। उन्हें कभी दुख न देना। अप्पाजी, छोटे अप्पाजी, विनय, तुम तीनों एक मन होकर रहो। जो कुछ अपने हिस्से में मिले उसे स्वीकार कर तृप्त रह।। अपना आत्मगौरव कभी कम न होने पाए। अकारण द्वेष और असूया को अपने मन में स्थान मत देना । इस पोय्सल राज्य की एकता बनी रहे, इसके लिए परिश्रम करते रहना है।" कहती हुई उन तीनों की पीठ सहलाती रहीं।
माधिक ने मारसिंगल्या के कान में कहा, 'यह क्या, अम्माजी इस तरह की बातें क्यों कर रही हैं ?"
"मैं कोई ऐसी बात नहीं कह रही हूँ, मौं। माँ होकर मुझे बच्चों से जो कहना है, वहीं कह रही हूँ। बच्चो ! यहाँ सिर्फ विट्टियण्णा उपस्थित नहीं है। उसे अपने भाई की तरह मान देना।"
"बेटे की तरह संभालनेवाली आप जब उपस्थित हैं, तब उसे किस बात की कमी है?" विनथादित्य ने कहा।
"जब तक मैं हैं ठीक है। बाद को...?" "बाद की बात अभी क्यों, भौं?" कहते हुए विनयादित्य का गला भर आया ।
"वैसा ही सही। अब फिर वह बात नहीं कहूँगी। शिवरात्रि की समाप्ति पर मैंने उदयकालीन राग का गान किया था न? अब इस शारदा के सान्निध्य में सन्ध्या-राग का गायन करने की इच्छा हो रही है। गाऊँ? शिवक्षेत्र में आने पर आप सभी का शाम का भोजन अँधेरा होने के बाद हो रहा है। यदि आप लोगों को भोजन करने में विलम्ब हो जाएगा तो मैं नहीं गाऊँगी।"
"हमारे लिए विलम्ब हो तो कोई हर्ज नहीं। आप स्वयं पाँच दिन से निराहार हैं। इस स्थिति में गान के लिए कह रही हैं तब..." चट्टलदेवी को, जो बात दबा रखी थो, कह आयो।
"क्या अम्माजी, तुम पाँच दिन से निराहार...?" माचिकव्वे ने आश्चर्य से पूछा।
"आज एक दिन और, माँ! आज शारदा का ध्यान कर लें, बस इसके बाद मैं किसी प्रत या नियम से बंधी नहीं रहूँगी।'' शान्तलदेवी ने कहा।।
"ठीक, तब तो गाकर समाप्त कर लो। बहुत थकना नहीं।" माचिक्रध्ये ने कहा।
452 :: पट्टमहादेवी शान्तला ; भाग चार