________________ ई कलिकालदोळु मसुब्रिहस्पति वंदिजनाश्रयं जग। व्यापित कामधेनुबभिमानि महाप्रभु पंडिताश्रयं / / लोकजनस्तुत गुणगणाभरणं जगदेक दानियु। व्याकुळमंत्रियेंदु पोगळगुं धरेपेडे मारसिंगन // दोरेये पेडे मारसिंग विभुविंगी कालदोछु / पुरुषार्थगळोळत्युदारतेयोळं धर्मानुरागंगळोळु // हरपादाब्ज भक्तियोळु नियमदोळु शीळंगळोळ तानेनलु / सुरलोकक्के मनोमुदं बेरसु पोदं भूतळं कीर्तिसत्तु / / अनुपम शान्तलदेवियु / नुनयदि तंदे मारसिंगय्यनु मि॥ बिने जननि माचिकव्वेयु / मिनिबुरमोडनोडने मुडिपि स्वर्गतरादरु / लेखक : बोकिमय्या॥ बिट्टिदेव की आँखों में आँसू भर आये। जब इस लेख को उन्होंने अपनी गोद में रखा तब कहीं उन्हें इन आँसुओं का पता चला। "कविजी! करवप्र पर सबको शान्ति प्रदान करने के इरादे से देवी द्वारा प्रतिष्ठित शान्तिनाथ स्वामी के मन्दिर के बाजू के मण्डप के स्तम्भ के उत्तर मुख पर शान्तिनाथ की स्थापना के सम्बन्ध में विवरण उत्कीर्ण है। उसी स्तम्भ के पूर्व तथा दक्षिण के मुखों पर इसे उत्कीर्ण करवाइए। हम लोक्किगोंडी पर विजय पाकर आये। परन्तु इधर हमने पोय्सल राज्य की भाग्यदेवी को खो दिया, हमने अपने हृदय की ही मानो उखाड़कर फेंक दिया।" कहकर उस लेख की प्रति लौटाने के उद्देश्य से हाथ आगे बढ़ाया। वह लेख यान्त्रिक ढंग से वोकिमय्या के हाथ में पहुंचा। कुछ कहे बिना मौन हो वह सिर झुकाकर वहाँ से चल पड़े। ॐ शं के शं ॐश इस कलिकाल में मनु-वृहस्पति के समान, वन्दिजनों के आश्रय, जगद्व्यापि कामधेनु, अभिमानयुक्त भूपालक, पण्डितों के आश्रयदाता, लोक-जन से संस्तुत, गुणगणाभरण, जगदेकदानी, स्थिरबुद्धि के मन्त्री-शब्दों से अलंकृत हेगड़े मारसिंगय्या भूलोक में प्रशंसित थे। पुरुषार्थों में, उदारता में, धर्मानुराग में, ईश्वरपादभक्ति में, नियमाचरण में, शील में, इस कलिकाल में हेग्गड़े मारसिंगय्या के समान कोई नहीं। यों भूलोक में प्रशंसित होकर मानसिक आनन्द पाकर मारसिंगय्या स्वर्गलोक सिधारे। उपमारहित शान्तलदेवी, उसके प्रिय पिता मारसिंगय्या और माता माचिकव्वे, तीनों क्रमशः देह त्यागकर स्वर्ग सिधारे। लेखक : बोकिमय्या 000 464 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार