Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 457
________________ धरेयोल विष्णुनिपाळकंगे विजयश्री वक्षदोनु संततं। परमान्ददि नोतु निल्वं विपुल श्रीतेजदुद्दानियं ॥ वरदिग्भित्तिय नेग्दिसल्लेरेव कीर्ति श्रीयेनुतिप्पुदी। धरेयोळु शान्तलदेवियं मेरेये वणिप्पण्णमेवष्णिपं॥ कलिकाल विष्णुवक्ष। स्थळदोळ कलिकाल लक्षिा तमिले : तलदेवि सौभाग्यम् । नेलंगळ बण्णिसुवेनें बने वषिणसुव ।। शान्तलदेविगे सद्गुण । मंतेगे सौभाग्यभाग्यवतिगे वच श्री ॥ कांतेयुमग - जेयुमच्युत । कांतेयु मेणेयल्लदुळिंद सतिषद्दोरेये ।। गुरुगळु प्रभाचंद्रदेवरे पेततायि गुणनिधि माचिकच्चे। पिरिय ऐपगडे पारसिंगय्यं तंदे मावतुं पेगडे सिंगिमय्ये ॥ अरसं विष्णुवर्द्धनिपं वल्लभ जिननाथं तनगेंदुर्मिष्टदैवं । अरसि शान्तलदेविय महिमेयं ब्रण्णिसलु बक्कु मे भूतळ दोछु | शक वार्ष 1050 मृरेनेय बिरोधिकृत्संवत्सरद चैत्र शुद्ध पंचमी सोमवारदंदु सिवगंगेय तीत्थंदलु मुद्धिपि स्वर्गतेयादछु । यह शान्तलदेवी विष्णनपाल के लिए युद्ध में विजय श्री रही, वक्ष पर हमेशा सन्तोष से शोभायमान लक्ष्मी रही, उसके शौर्य की कोर्ति को प्रसारित करने वालो दिगंगना रही, तो इस भूमण्डल में उसका वर्णन कौन कवि कर सकता है? कलिकाल के इस विष्णु के वक्ष पर वास कर रही कलिकाल की इस लक्ष्मी शान्तलदेवी के सौभाग्य का वर्णन करने में कौन समर्थ है ? सद्गुणशालिनी, सौभाग्यवतो इस शान्तलदेवी की समानता सरस्वती, पार्वती और लक्ष्मी से की जा सकती है, दूसरी पतिव्रताओं से नहीं। इस शान्तलदेवी के गुरु प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव, माता गुणनिधि माचिकव्वे, पिता बड़े हेग्गड़े मारसिंगय्या, मातुल हेग्गड़े सिंगिमय्या, पति विष्णुवर्धनभूप, आराध्य इष्टदेवता जिननाथ रहे। ऐसी रानी शान्तलदेवी की महिमा का वर्णन इस भूतल में कौन कर सकता है? शक वर्ष 1050 विरोधिकृत् संवत्सर के चैत्र शुद्ध पंचमी सोमवार के दिन शिवगंगा क्षेत्र में देह त्यागकर स्वर्ग को प्राप्त हुई। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 463

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