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विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धि प्रवर्धमान चंद्रार्क ताम्बरं सलुत्तुमिरे तत्पाद पद्योपजीवि पिरियरसि पट्टमहादेवि शान्तलदेवि
स्वस्त्यनवरत परम कल्याणाभ्युदय सहस्रफळभोगभागिनी द्वितीय लक्ष्मी लक्षण समानेयु । सकळगुणगणानूनेयु । अभिनव रुगुमिणीदेवियु । पतिहित सत्यभामेयु। विवेकक ब्रिहस्पतियुं । प्रत्युत्पन्न वाचस्पतियु । मुनिजन विनेय जनविनीतेयुं । चतुस्समेय समुद्रणे । व्रतगुणशीळचारित्रांतःकरणेयु । लोकैक विख्यातेयु । पतिव्रता प्रभाव प्रसिद्ध सीतेयु । सकळ वंदिजन चिंतामणियु। सम्यक्त चूड़ामणियु। मुवित्त सति गंधवारणेयु । पुण्योपार्जन करणकारणेयुं । मनोजराजमित्र माताकेगुं ।
विनुष्य को गोत्रा। सूबरगुं: जिन-समय समुदितः प्रकारयु। जिनधर्म कथाकथन प्रमोदेयु । पहाराभयभैराज्य शास्त्रदान विनोदेयुं । जिनधर्म निर्माळेयं । भव्यजनवयु । जिनगंधोदक पवित्रीक्रितोत्तमांगेयुमप्प।
आनेगई विष्णुनिषप। नोनयन प्रिये चळाळनीळाळकि चं॥ द्रानने कामन रतियलु। तानेणेतोणे सरिसमाने शान्तलदेवि ।।
का विजयराज्य उत्तरोत्तर आभिवृद्धि से प्रवर्धमान होता रहा और चन्द्र सूर्यनक्षत्र रहने तक संरक्षण करते रहने पर, उसकी पदकमल- सेविका बड़ी रानी पट्टमहादेवी शान्तलदेवीस्वस्त्यनवरत परम कल्याणाभ्युदय सहस्रफल- भोगभागिनी, द्वितीयलक्ष्मी लक्षणसमाना, सकलगुणगणानूना, अभिनवरुक्मिणीदेवी, पतिहित सत्यभामा, विवेककबृहस्पति, प्रत्युत्पन्न वाचस्पति, मुनिजन और गुरुजनों में विनीता, चतुस्समय समुद्धरणरता, व्रतगुण्यशीलचारित्र से भूषित अन्तःकरण वाली, लोककविख्याता, पतिव्रता प्रभाव से सीता जैसी प्रसिद्ध, सकलवंदिजन के लिए चिन्तामणि, सम्यक्त्वचूडामणि, उद्धत सौतों को नाशक गज, पुण्यसम्पादन करने की कारण, मन्मथराज्य की विजयध्वज, निज-कलाभ्युदय- दीपिका गीतवाद्यसूत्रधारिणी, जिन-समग्य समुदित्तप्रकार, जिन-धर्म-कथाकथन प्रमोदा,
आहार-अभय-भैषज्य-शास्त्रप्रदान से सन्तुष्ट होनेवाली, जिन-धर्म : निर्मला, भव्यजनवत्सला, जिन-गन्धोदक से पवित्रीकृत शिर को धारण करनेवाली, उस प्रसिद्ध विष्णुनृप के मन और नयनों को सन्तोष देनेवाली, चंचल भ्रमर जैसे केशोंवाली, चन्द्रानना, मन्मथ की रति जैसी रही यह शान्तलदेवी,
462 :: पट्टमहादेवो शान्तला : भाग चार