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एरेद मनुजंगे सुर भू भरतं शरणेंदव कुळिशागारं ॥ परवानतेगनिल तनयं ।
धुरदो पोणगे मृत्तु विनेयादित्यं ॥
एने तानुं केरेदेगुलंगळेनितानुं जैनगेहंग । तेनेतुं नाव नृळ प्रजेगळं संतोशदिं माडिदं ॥ विनेयादित्यत्रिपाळ पोसळने संदिर्दा बलीन्द्रंगे मे । लेने पें पोळ्वन्ननावनो महागंभीरनं धीरनं ॥
इट्टिगेगेन्दगळ्द कुळिगळ्केरेयादवु कल्लुगे गोण्डपे । ट्टु धरातलक्के सरियादवु सुण्णद भंडि बंदपे ॥ येळवावेने माडिसिदं जिनराज गेहमं । नेट्टने पोय्सळेसनेने बणिपरम्र्म्मले राजराजनं ॥
आ पोप्सळ भूपंगे म। हीपाळ कुमार निकर चूडारत्नं ॥ श्रीपति निज भुज विजय प होपति जनियि सिदनदटनेरेयंगपिं ॥ विनयादित्य- त्रिपाळनात्मज निळा लोकक कल्पद्रुमं ।
सेवा करनेवाले मनुष्यों के कल्पवृक्ष, शरणागतों के लिए वज्रगृह जैसे दृढ़ संरक्षक, दूसरों की स्त्रियों के लिए आंजनेय सदृश, युद्ध में सामने वाले को काल समान यह विनयादित्य ।
विनयादित्य नृपाल ने अनेक तडाग, देवालय, जिनगृहों को बनवाया, अनेक देवों को, ग्रामों को, प्रजाजन को सन्तुष्ट किया; यह पोय्सल राजा बलीन्द्र से भी श्रेष्ठ कीर्तिशाली था, तो इस धीर महागम्भीर राजा का वर्णन कौन कर सकता है ? ईंटों के लिए खुदी हुई भूमि ही तडाग हो गयी; ( भवन निर्माण के लिए) निकाले हुए पत्थरों से पर्वत पृथ्वी समान हो गये; चूने की गाड़ियों की पगडण्डी ही खाई बन गयी, ऐसे जिनेश्वर गृह को पोय्सल राजा ने बनवाया। पर्वतराज सदृश उसका वर्णन भला कौन कर सकता है ?
उस पोसलराज से, राजकुमारों के समूह के मुकुटरल जैसे, लक्ष्मीरमण के समान, अपनी बाहुओं से विजित राजसमूह, एरेयंग राजा ने जन्म लिया | विनयादित्य राजा का यह पुत्र, भूलोक में कल्पवृक्ष था । जगदेकवीर यह 458 : पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार
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