Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 438
________________ "ऐसा कहीं हो सकता है? आप पर उनकी श्रद्धा अपार है। आपको सुखी बनाये रखने के लिए उन्होंने जो त्याग किया है, उसका मूल्य कौन आँक सकता है?" "उसी का हमने दुरुपयोग किया है। हम एकपत्नीव्रत का पालन करते तो मानसिक शान्ति कभी भंग न होती।" "तो सन्निधान की मानसिक शान्ति में बाधा डालने का कारण हम हैं?" "हम किसी पर आरोप नहीं लगाते। राजनीतिक कारणों से हमने तुमसे तथा राजलदेवी से विवाह किया, सच है। कुछ क्षणों के लिए तुम्हारे प्रति हमारा मन आकर्षित जरूर हुआ, मगर उस आकर्षण पर काबू पा सकते थे। लेकिन तुम लोगों से विवाह के बाद कोई बुराई नहीं हुई। बल्कि एक तरह हेल-मेल के होने से राजमहल में शान्ति रह सकी है। तुमने जब मेरे प्राण बचाये, तब से यह राजनीतिक विवाह मान्न न होकर, एक आत्मीयता का रिश्ता बन चुका है। राजलदेवी के साथ आत्मीयता बढ़ाने की व्यवस्था स्वयं पट्टमहादेवी ही ने की। बस यहीं तक रुक जाते तो कितना अच्छा रहता! पट्टमहादेवी के त्याग के फलस्वरूप आप दोनों मिली और इससे हमारे जीवन में शून्यता नहीं आयी। परन्तु...जल्दबाजी में हमारा यह मतान्तरित होना; उतनी ही जल्दबाजी में मानसिक चांचल्य के कारण एक अज्ञात कुल-गोत्र की कन्या से विवाह करना-एक के बाद एक बड़े अपराध हुए हमसे।" "सो कैसे? उससे भी तो सुख पाया है। हम अगएके लिए -लाममा नहीं हो सकी, बन्ध्या ही रहीं। परन्तु उसने तो अपेक्षित फल भी दिया!" "उस वक्त वह सन्तोष का विषय लग रहा था। परन्तु अब वहीं मन की अशान्ति का कारण बना है। हमसे अधिक यह पट्टमहादेवीजी की अशान्ति का कारण बना है। क्या सन्त्र गुजरा है सो तुम्हें भी मालूप है। अभी प्रवास के बहाने यहाँ आयी र्थी तब क्या कहा, पालूम है ? 'मेरे बच्चों को सिंहासन न भी मिले तो कोई हर्ज नहीं, अनेक लोगों के श्रम और बलिदान से निर्मित इस राज्य के टुकड़े नहीं होने चाहिए। यह आन्तरिक झगड़ों का अड्डा न बने। मैं इसे देख ही नहीं सकती। उस मुद्दला की हत्या की बात जबसे सुनी, तब से मन में विरक्ति-सी पैदा हो गयी है।" ___ "राज्य की सुरक्षा और एकता के लिए इस तरह का त्याग हर किसी से सम्भव नहीं है। ऐसा त्याग पट्टमहादेवी ही कर सकती हैं।" बम्मलदेवी ने कहा। "ऐसी स्त्री की हत्या का षड्यन्त्र करानेवालों से हम आत्मीयता से कैसे व्यवहार कर सकते हैं ? हम तो उस रानी और उसके बेटे का मुख तक देखना नहीं चाहेंगे।" "इस मामले में लक्ष्मीदेवी को शायद कई बातें मालूम नहीं हैं।" "फिर भी उसमें जो महत्त्वाकांक्षा उत्पन्न हुई है, अपने बेटे को सिंहासन पर बिठाने को, उस कारण वह मन को भाएगी भी कैसे?" "ईश्वर ने हम पर कृपा की, हम माँ न बर्नी, अच्छा हुआ।" 442 :: सट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार

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