Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 442
________________ गवाह की जरूरत होगी? इसलिए पट्टमहादेवी ने सन्निधान से निवेदन किया कि यह सिंहासन अपने बच्चों को न भी मिले तो हर्ज नहीं, राज्य की एकता का बना रहना बहुत आवश्यक है।" बिट्टिदेव ने कुछ नहीं कहा। सोचते बैठे रहे। थोड़ी देर बाद बोले, "तो क्या विजयोत्सव में हमने जो घोषित किया था, उसके कोई माने नहीं? क्या वह राजकुल की रीति के विरुद्ध था?" "उस घोषणा के बारे में अब चिन्ता क्यों ? उस तरह घोषित करने से पहले आपने पट्टमहादेवी से विचार-विमर्श भी तो नहीं किया था?" "यदि विचार-विमर्श किया होता तो उस घोषणा का मौका ही नहीं मिलता। उसे हमने 'पट्टमहादेवी और उनके बच्चों के हित के लिए किया था 111 "इससे छोटी रानी की अभिलाषा पर पानी फिरने का-सा हो गया न?" "हो सकता है।" "अब उस तरफ से जो प्रतिक्रिया होगी, उससे छुटकारा मिले भी कैसे?" "ऐसी प्रतिक्रिया से हमें डरने की जरूरत नहीं।" "कुछ भी हो, दो गुट तो बन ही गये न?" "नहीं। जो था, उसमें हमने एक का साथ दिया। जो न्याय-पक्ष था उसी को हमने बल दिया।" "सो तो ठीक है। अब पट्टमहादेवी के पत्र पर प्रतिक्रिया क्या होगी सन्निधान को?" "हमला करने की घोषणा करने के बाद पीछे हटने पर दुनिया क्या कहेगी?" "तो सन्निधान पट्टमहादेवीजी की अभिलाषा पूरी नहीं करेंगे?" "दोनों बातें परस्पर विरोधी हैं। कैसे करें?" "सन्निधान स्वीकार कर लें तो हम तीनों वहाँ हो आ सकेंगे। हमले को वापस लेने की जरूरत नहीं होगी।" "सोचेंगे। हमले की गतिविधि पर निर्भर करेगा कि हमें अवकाश मिलता है या नहीं।" "किसी भी तरह से सही, मेरो राय है कि अवकाश निकाल लेना उत्तम है।" "अभी तो समय है। सोचकर बताएँगे।" "उन्हें अभी उत्तर नहीं भेजेंगे?" “भेज देंगे।" "ठीक है।" उन्होंने उत्तर लिख भेजा। लिखा कि, 'पट्टमहादेवी की मनोकामना पूरी करने की हमारी भी इच्छा है । हमले को वापस लेना तो स्वाभिमान के विरुद्ध होगा-हम इसी 446 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भा चार

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