Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 443
________________ दुविधा में पड़े हैं, फिर भी सोचने के लिए अभी कुछ समय है। शिवरात्रि के अवसर पर शिवगंगा जाएँगी तो वहाँ कितने दिन ठहरने का विचार है ? मानसिक शान्ति लाभ के इरादे से वहाँ महीने दो महीने ठहरने का विचार हो तो किसी भी हालत में समय निकालकर हम वहाँ अवश्य पहुँचेंगे। इसलिए पूरे कार्यक्रम की जानकारी दें। वर्तमान परिस्थितियों में शिवरात्रि पर आना शायद ही सम्भव हो !" अब की बार शिवरात्रि के अवसर पर पट्टमहादेवीजी के पधारने की बात उस प्रान्त में व्यापक रूप से फैल गयी थी। फलस्वरूप वहाँ अपेक्षाकृत अधिक भीड़ जमा हो जाने की सम्भावना थी। इसलिए आनेवाले इन भक्त जनों के ठहरने आदि की व्यवस्था के साथ-साथ, पट्टमहादेवी और परिवार के सभी सदस्यों के निवास आदि की विशेष व्यवस्था करनी थी। ऐसे छोटे से गाँव में यह सब करना कठिन है, यह जानकर शान्तलदेवी ने ही गंगराज और मादिराज की सलाह के अनुसार, काफी प्रमाण में खाद्य सामग्री तथा देखभाल करने के लिए जरूरी लोगों को भेज देने के साथ, सभी कार्यों पर निगरानी रखने का आदेश चोकिमय्या को दिया। चोकिमय्या की मदद के लिए चट्टलदेवी और मायण को भी भेज दिया गया। क्रीडापुर की सारी जनता जकणाचार्य के नेतृत्व में वहाँ सेवा के लिए तैयार थी। वे भी वहाँ खाली हाथ नहीं आये थे। अपने ग्राम में जो जरूरत से ज्यादा अनाज था उसे साथ लेकर आये थे। शिवरात्रि के दिन तक वहाँ पहाड़ की उपत्यका में, एक बड़े नगर का ही निर्माण हो गया था। योजना के अनुसार पट्टमहादेवी, उनके माता-पिता, रेविमय्या, विनयादित्य राजधानी से आ गये। कुमार बल्लाल ने राजधानी न आकर सपरिवार सीधे वहीं पहुँचने की सूचना पत्र द्वारा दे दी थी। चोकिमय्या के साथ छोटे बिट्टिदेव आ ही चुके थे। शिवरात्रि के लिए महासन्निधान के आने का तो प्रश्न ही नहीं था, हाँ माघ वदी दशमी तक पट्टमहादेवीजी शिवगंगा पहुँच गयी थीं। माचिकब्वे ने कहा भी कि इस अवसर पर सिंगि सपरिवार और आ जाता तो कितना अच्छा होता ! उनके मायके की तरफ से वही एक रिश्तेदार थे। " पत्र गया है, प्रतीक्षा करेंगे।" शान्तलदेवी ने कहा । पारसिंगय्या ने पहले ही बता दिया था कि शिवरात्रि के दिन उनका निर्जल उपवास व्रत रहेगा। उसी के अनुसार उस दिन वे तड़के ही जाग गये और अपना स्नानध्यान, पूजा-पाठ आदि कार्य समाप्त कर शिवालय में पहुँच गये। थोड़ी देर बाद शान्तलदेवी, माचिकब्वे, शान्तलदेवी के बेटे-बहू आदि सभी रेविमय्या के साथ मन्दिर में जा पहुँचे। दिन की सारी पूजा-अर्चना विधिवत् सम्पन्न हुई। रात के चारों प्रहर का पूजा क्रम आरम्भ हो चुका था । दूसरे प्रहर में जब रुद्राभिषेक होने लगा तो पुजारियों के रुद्रपाठ के साथ हाथ पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार: 447

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