Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 424
________________ चक्कर लगा आने की अभिलाषा है । सन्निधान के पास पत्र भेजेंगी। वे स्वीकृति दे दें, तब आप लोग भी मेरे साथ चलेंगी?" "ठीक है, चलेंगी। खाली खा-पीकर बैठे रहने के सिवा दूसरा काम ही क्या है? यह हमारे लिए एक अच्छा अवसर होगा।" "ठीक, आज ही चिट्ठी लिख भेजूंगी।" शान्तलदेवी ने कहा। उनके कहे अनुसार उसी दिन पत्र हागल के लिए रवाना हुआ। उत्तर की प्रतीक्षा में कुछ दिन गुजरे। इस बीच एक दिन प्रधान गंगराज पट्टमहादेवीजी के दर्शन हेतु राजमहल में आये। उन्होंने निवेदन किया, "मुहला के हत्यारों का पता लगाकर चार लोगों को पकड़ लिया गया है, उन्हें यहाँ बुलवाया गया है। उनका न्याय-विचार अभी करना है या सन्निधान से निवेदन कर उनकी आज्ञा की प्रतीक्षा की जाय।" "आप, मादिराज और नागिदेवण्णा ने ही तो इस न्याय-विचार का काम किया है और अंशत: निर्णय भी सुना दिया है। अब बाकी जो बचा है, सो भी विचार करके निर्णय सुना देना ठीक है। सन्निधान तक इस विषय को ले जाने की आवश्यकता नहीं। न्याय-विचार करने के बाद उनके पास समाचार भेज देना पर्याप्त होगा। यह तुरन्त हो जाए। नागिदेवण्णाजी को बुलवा लीजिए। तब तक अपराधी बन्धन में रहें।"शान्तलदेवी ने स्थिति स्पष्ट कर दी। उन्होंने ब्यौरा जानने की उत्सुकता नहीं दिखायी। गंगराज भी तो ब्यौरा नहीं देना चाहते थे। पट्टमहादेवी का निर्णय सुनने के बाद भी गंगराज गये नहीं, बैठ रहे। शान्तलदेवी ने पूछा, "और कुछ कहना है?" "पूछना उचित है या नहीं, मैं नहीं जानता। विषय सन्निधान से सीधा सम्बन्ध रखनेवाला है। गलती हो तो क्षमा करें। मैं पट्टमहादेवीजी से बहुत बड़ा हूँ, उम्र के विचार से।' इतना कहकर चुप हो गये। ___ "इस बात को कौन अस्वीकार करता है ? इस पूरे राज्य में आप ही सबसे बड़े हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि आप हमारे बीच हैं।" __ "यही अगर भाग्य की बात हो तो हमारी यह अभिलाषा असाधु नहीं कि हमारी पट्टमहादेवी हमारे बीच अनन्तकाल तक रहें।" "यह कहने का अभी ऐसा प्रसंग ही क्या है?" ''मेरी पत्नी लक्ष्मी जब मुझसे बिछुड़ी तभी से व्यक्तिगत रूप से मैं कार्यमुक्त होना चाहता था—यह बात छिपाकर नहीं रखी। जब दोनों सन्निधान के समक्ष मैंने कार्य-मुक्त होने की इच्छा व्यक्त की तो वह बात ठीक नहीं लगी और मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई। जिस राजघराने का नमक खाया, उस राजपरिवार की बात मानकर कर्तव्यबुद्धि से कार्य करता रहा । राज्य के लिए माता सदृश, संसार को आदर्श, पूजनीया आप 428 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार

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