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से हमें डरना नहीं है । हमारा विश्वास है कि मृत्यु स्वागतार्ह है। इसीलिए हम यह कहते हैं कि देह से आत्मा मुक्त हो गयी। मैं मृत्यु के विचार से कभी विचलित नहीं होती । उससे मुझे कुछ भी कष्ट नहीं होता । किसी ने साजिश की और वह राज्य के ऊँचे स्तर के लोगों के नाम से प्रचारित हुई। पोय्सल पट्टमहादेवी और रानियों के नाम पर हत्या हुई तो इसका अर्थ यही हुआ कि इस तरह के जघन्य अपराध करनेवाले ने यही समझ लिया होगा कि अपने अपराध को छिपाने के लिए मुद्दला की हत्या के सिवा अन्य कोई मार्ग ही नहीं। यही कारण है कि एक सामान्य प्रजा जीविका के लिए राजमहल की दासी बनी और हत्यारों द्वारा मारी गयी 1 मुद्दला की हत्या के साथ सदा हमारे नाम भी जुड़े रहेंगे, इसे हम कैसे सह सकते हैं, आप ही कहिए ?" ये बातें दर्द भरी थीं। "हमारी बुद्धि इतनी दूर तक सोच नहीं सकती। उसे भूल जाना ही अच्छा है।" 'भूल कैसे सकती हूँ?"
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" आपके आहेत की चाह से मरी मीने को ताबीज भगवान था, उसे जिस तरह भूल गयीं, वैसे ही।"
"उससे मेरा या मेरे माता-पिता का कोई अहित नहीं हुआ न? आपकी माँ एक अपरिचित के जाल में फँसकर खुद ही जल जलकर इस संसार से उठ गयीं। मुझे उनके प्रति सहानुभूति है।"
" लेकिन मुझे नहीं है। और..."
"उन्होंने इस संसार को विशालता से नहीं देखा। बहुत संकुचित भावना रही उनकी, उन्होंने केवल अपनी बेटियों का हित साधा। "
"न बेटियों का हित और न अपना ही हित साध सकी।"
" इसीलिए हमें सभी बातों में अपने स्वार्थ को या अपनी सन्तान के हित को संकुचित दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने पर आपकी माँ की जो गति हुई, वही होगी।"
"तो क्या आप कहती है कि रानी लक्ष्मीदेवी की भी वैसी ही हालत होगी जैसी मेरी माँ की हुई ?'
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'सब कुछ की लालसा करनेवालों के लिए निराश होना निश्चित है ।"
"वह अपना-अपना भाग्य है। कोई कुछ भी करे, हमारी पट्टमहादेवी को चाहिए कि मन को विचलित न करें, अब जैसा कहती हैं, छुटकारे की या वैराग्य की बात न "करें।"
"मन की पीड़ा के कारण कहा होगा। इसलिए मैं उस सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहती। मुझे जैसा लगा उसे खुले दिल से आप लोगों को बता दिया । " 'कह चुकी न? अब उस बात को भूल जाइए। "
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'यहीं बैठी रही तो भूल नहीं पाऊँगी। एक बार अपने इस सम्पूर्ण राज्य का
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार: 427