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___ "हत्या करनेवाला पकड़ में आ जाए तो सारी बातें स्पष्ट हो जाएंगी, यही विचार कर चुप रहा। इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।"
गंगराज बोले, "तो मतलब यह हुआ कि अभी निर्णय नहीं लिया जा सकेगा!"
"मुद्दला के मुँह से निकलने वाली बात इस हत्या का मूल कारण थी। मतलब यह कि सत्यांश को जाननेवाले लोग हैं, लेकिन उनका पता नहीं लग सका है। इसलिए अभी निर्णय स्थगित हो रखा जाए।" बिट्टिदेव ने कहा।
उन्होंने जब यह बात कही तब उनकी दृष्टि तिरुवरंगदास पर केन्द्रित रही। इस न्याय-विचार को विनयादित्य बहुत ध्यान लगाकर सुन रहा था। महाराज की इस दृष्टि को उसने भाँप लिया। उसने समझ लिया कि पिताजी को भी कुछ ऐसा ही लगा है जैसा स्वयं उसे। इस बात को जाननेवाले लोग हैं, लेकिन उनका पता नहीं चल सका है, सन्निधान की इस बात में जो आशय छिपा है वह उनकी दृष्टि से व्यक्त हो जाता है-यह विनयादित्य की समीक्षा थी।
मादिराज ने कहा, "सिंगिराज और गोज्जिगा इन दोनों का इस तरह का विद्वेष फैलाने में सीधा हाथ है-यह तो निर्णय हो ही चुका है और इसके लिए साक्ष्य भी हमें प्राप्त हैं। कुछ लोग अपनों की तर अंधेरे में बबने बालों के पीले भी नले हैं। इस षड्यन्त्र के दो मुद्दे हैं। एक, जनता में एकता को तोड़ने के लिए किया गया प्रचार; दूसरा, उसका प्रेरणास्रोत । इस दूसरे के लिए फिलहाल साक्ष्य अपूर्ण हैं। पहली बात के लिए प्रमाण मिल जाने के कारण कम-से-कम उस अंश पर न्यायपीठ निर्णय दे सकती है। यों ही सभी बातों को स्थगित करने से उन लोगों को भी बन्धन में रहना पड़ेगा जिन्हें क्षमा किया जा चुका है। सन्निधान और हमारे इस न्याय-मण्डल के अन्य दो सदस्य यदि स्वीकृति दें तो उस एक अंश पर निर्णय सुनाया जा सकता है।"
शान्तलदेवी ने कहा, ''यह विषय न्यायपीठ से सम्बन्धित है। अच्छा होगा यदि निरपराध दण्डित न हों, इस आधार पर न्यायपीठ स्वयं ही विचार करे।"
तीनों न्यायाधीशों ने आपस में विचार-विमर्श किया। बाद में गंगराज ने कहा, "न्यायपीठ का तात्कालिक निर्णय सुनाने के लिए फिलहाल दो दिन का समय और लगेगा। तब तक के लिए न्याय-विचार सभा स्थगित की जाती है।''
उस दिन की यह सभा विसर्जित हुई। सभी जन अपने-अपने निवासों तथा नियुक्त स्थानों की तरफ चले गये।
छोटे कुंवर बिट्टिदेव और विनयादित्य एक जगह एकान्त में मिले। विनयादित्य ने इस बारे में अपने अनुभव अपने बड़े भाई को सुनाये। साथ ही उस सम्बन्ध में अपनी माँ और रेविमय्या से जो चर्चा की थी उसका सार भी बताया। अन्त में कहा, "मुझे तो पहले ही लगता था कि छोटी रानी की तरफ से कभी-न-कभी परेशानी होगी। मगर बालक समझकर किसी ने मेरी बातों की परवाह नहीं की। पिताजी और माँ जब
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 399