________________
क्रीड़ापुर गये थे तब वह छोटी रानी साथ न ले जाने के कारण मुँह फैलाये बैठी थी। और अपने पिता को साथ लेकर वह बेलापुरी चली गयी। क्यों गयो सो तो भगवान् ही जाने कहती है कि सब कुछ ठीक होकर कोई अस्त्र नहीं है।' वे अपने मार्ग से हटने का नाम नहीं लेतीं। क्या किया जाए! जब तक वे हैं तब तक ऐसी कोई बड़ी समस्या नहीं उठेगी, फिर भी आगे चलकर परेशानी तो होगी ही। इसलिए हम दोनों को इस सम्बन्ध में सोच-विचार कर अपना ही कोई रास्ता ढूँढ लेना होगा ।"
" हमें ऐसा कोई काम नहीं करना है जो माँ को पसन्द न हो।"
"फिर भी हमें अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए न ? अपनी उदारता और प्रेम के फलस्वरूप छोटी रानी की इस हठ को, कि उसके बेटे का ही राज्याभिषेक किया जाना चाहिए, माँ स्वीकार कर बैठेंगी तो क्या हमें उसके अधीन रहना होगा ?" " सो तो नहीं हो सकता। चाहे किसी को कुछ भी दे देवें, हमें स्वतन्त्र रूप से जितना मिलना चाहिए उतना अवश्य मिलेगा। हम तीनों में एकता रहेगी तो वे कर क्या सकेंगे ?"
"तुम बड़े अप्पाजी से बातचीत करो। "
"पहले चोकिमय्या से बात करूंगा, बाकी याद में देखेंगे 111
"चौकिमय्या क्या कर सकते हैं ?"
"वह हमारे राज्य के बड़े सैन्याधिकारी हैं। उनका अनुमोदन हमें मिले तो हमारी योजना के लिए वह सब सहायक होगा। "
" तो मतलब यह हुआ कि हमें अपनी मदद के लिए अभी से दण्डनाथों का सहयोग प्राप्त कर रखना चाहिए। यही न ?"
"बुरा वक्त आ जाए तो उसके लिए यह तैयारी आवश्यक है । यों तो चोकिमय्या विजयोत्सव के लिए मेरे साथ आये ही हैं, उनसे परामर्श कर लूँगा।"
14
" परन्तु बात फैलने लगी तो खतरा होगा!"
"चोकिमख्या के बारे में यों डरने की जरूरत नहीं। उनका मुझ पर कितना प्रेम और गौरव है, जानते हो? मेरे लिए जान तक देने को तैयार हैं। मैंने अभी यह बात किसी से कहीं नहीं। उन्होंने भी यही कहा कि किसी को न बताएँ । उन्होंने मेरे लिए अपने प्राणों को गरुड़ ( धरोहर) बना रखा है।"
4
" क्या ! प्राणों का गरुड़! तो क्या उन्होंने बायें पैर में गरुड़ पेंडेर' धारण कर रखा है ?"
"हाँ, मुझे जब पूर्वी प्रान्त में भेजा गया तब वह मेरे रक्षक बनाकर भेजे गये थे । माँ ने भी उन्हें अनेक महत्त्वपूर्ण बातें बतायी हैं। उसी का फल है यह प्राणों का गरुड़अपने प्राणों को धरोहर बना देना । *"
400 पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार