Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 406
________________ अपने साथियों को भी ले डूबता है । बेचारे उन निरपराध लोगों को क्यों कष्ट दिया जाए, यो जकणाचार्य के मन में विचार उठा। इस विचारधारा ने उनका मन अपने विगत दिनों की ओर मोड़ दिया। बिना सोचे-समझे जो कार्य कर बैठा था, उसकी वजह से मेरी पत्नी और पुत्र को ही नहीं, सारे बन्धुवर्ग को कष्ट झेलने पड़े, फिर भी उन बेचारों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायो । यदि वे प्रतिक्रिया दिखाते तो मेरा जीवन क्या वर्तमान स्थिति में होता? यह क्षमाशीलता ही तो है जो सुख का मार्ग प्रशस्त करती है। इसीलिए पट्टमहादेली ने क्षमा को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। यदि वह क्षमा गुण न होला तो हरीशजी का स्थपति बनना सम्भव होता? सनी पद्मलदेवीजी को इस राजमहल में ऐसा गौरवमय स्थान और प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती थी? रानी लक्ष्मीदेवी और उसके पिता का इस राज्य में रहना सम्भव होता? चाहे किसी से किसी भी स्थिति में मिलें, सन्तोषपूर्वक मिलना, वही खुशी से भरा स्वागत, वहीं सरल बरताय, वहो सज्जनता, उदारता की वहो रोति-ऐसा कितनों से सम्भन्न हो सकता है ? ये और ऐसे ही अनेक विचार, एकक-बाद एक, जकणाचार्य के मन में उठ रहे थे। यों यात्रा में जकणाचार्य को कोई अकावट महसूस नहीं हुई। उधर राजधानी में विजयोत्सव की तैयारियां जोरों से चल रही थीं। परन्तु राजमहल में एक तरह गम्भीर वातावरण रहा। उत्सव की उमंगभरी चहल-पहल के बदले राजमहल में एक प्रकार का गम्भीर मौन छाया हुआ था। राजमहल से सम्बन्धित सभी करीबकरीब आ चुके थे। प्रथम श्रेणी के दण्डनायक, मन्त्री, सब आये हुए थे। यादवपुरी, यटुगिरि, तलकाडु, कोवलालपुर, बलिपुर प्रान्त, नोलम्बवाड़ी, हानुंगल आदि प्रदेशों से भी अनेक प्रमुख जन आ चुके थे। राजमहल का मन्त्रणालय लगातार कार्यक्रमों के कारण खचाखच भरा रहा। एक-न-एक विषय को लेकर विचार-विनिमय के लिए बैठकें होती रहीं। इनमें यदि किसी ने भाग नहीं लिया था तो रानी लक्ष्मीदेवी और उसके पिता ने मारसिंगय्या, रानी राजलदेवी, रानी पद्मलदेवी और उनकी बहनों ने। यह कहने की जरूरत नहीं कि रानी लक्ष्मीदेवी और उसके पिता, ये दोनों इससे बहुत असन्तुष्ट थे। रानी लक्ष्मीदेवी विचार करने लगी, मैं किसी गिनती में ही नहीं हूँ! उस बन्ध्या बम्मलदेवी को बुलाया गया है और मुझको नहीं! यह सब उस पट्टमहादेवी का ही कुतन्त्र है। सिर्फ मेरे मन को सान्त्वना देने के खयाल से रानी राजलदेवी को नहीं बुलाया है। पट्टमहादेवी के वृद्ध पिता को भी नहीं बुलवाया गया है। उन दोनों को नहीं 410 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार

Loading...

Page Navigation
1 ... 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458