________________
उन्हें पट्टमहादेवीजी को नहीं बताते ?"
14
" उन्हें सब पता हैं। परन्तु उन्होंने कभी प्रकट रूप से असन्तोष व्यक्त नहीं किया। आपको ज्ञात है कि मैं मुख्य पहरेदार रेविमय्या के अधीनस्थ हूँ ? इसीलिए न आपकी सेवा के लिए मुझे नियुक्त किया गया है ? रेविमय्या के गुट का होने के कारण मुझे काफी बातें मालूम हैं।"
LL
'क्या फायदा? अपराध करनेवालों को यों स्वतन्त्र छोड़ रखें तो आगे क्या हाल होगा ?"
"कोई बहुत बड़ा अनर्थ नहीं होने वाला है - ऐसा पट्टमहादेवीजी का कहना है।" "इन लोगों ने उनकी उदारता को शायद गलत समझा है। उनके स्वभाव से मैं परिचित हूँ। वे सदा अर्हन् से यही प्रार्थना करती हैं कि वह ऐसे लोगों को सद्बुद्धि । लोग इसी तरह गलती करने जाएँ और उनका प्रायश्चित्त वे करें कुछ ऐसी ही उनकी रीति है।"
Jadd
14
" इसके माने ?"
14
'इसके माने यह कि वे सब कुछ त्याग करने के लिए तैयार हो जाएँगी। भगवान् बाहुबली की उपासक होने के साथ-साथ उनके जीवन-दर्शन को भी वे अच्छी तरह जानती हैं। उस त्याग की शक्ति से भी वे भलीभाँति परिचित हैं ।"
"तो ?"
" अधिकार, पद, सिंहासन, स्थान आदि किसी का भी त्याग करने में वे आगापोछा नहीं करेंगी। हाँ, उस त्याग से राज्य में सुख-शान्ति रहे, यही चाहेंगी। उनकी अपनी दृष्टि में इच्छा-अनिच्छाओं से ज्यादा ऊँची है समूचे राज्य की सुख-शान्ति।"
" परन्तु धर्म के झूठे जाल में फँसकर जो अन्ध हो गये, वे यह सब क्या समझें ! इस राज्य में अनेक विजयोत्सव हुए हैं, पर लगता है इस बार का विजयोत्सव कुछ और ही ढंग से होगा, वह लोगों की गलतफहमियों को दूर कर सबकी आँखें खोल देगा।"
"ऐसा हो तो बड़ी बात है! उन्हें दुःखी करने वालों को कभी सद्गति नहीं मिलेगी, पंचण । श्रीवैष्णव धर्माबलम्बी ही सिंहासनारूढ़ हो, ऐसा कहनेवालों के पीछे सम्प्रदाय विशेष का पर्याप्त बल होगा। बिना उसके ऐसी बात करना सम्भव है ?" 'प्रत्यक्ष रूप से बल दिखाई न भी दे, पर अप्रत्यक्ष रूप से वह हैं अवश्य । पट्टमहादेवीजी सब कुछ जानती हैं।"
"
"ऐसा है ! तो वे चुप क्यों हैं ?"
" वे कभी जल्दबाजी नहीं करतीं।"
" सो तो है। श्रीवैष्णव मत की ओर जिनका विशेष झुकाव है और ऊँचे स्थान पर आसीन हों ऐसे कोई हैं ?"
408 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार