Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 410
________________ - - - --. हमारे प्रधानजी जैन हैं, हमारे दामाद जैन हैं। जैन, शैव और वैष्णव कन्याओं से हमारा पाणिग्रहण हुआ है। हमारे दण्डनायकों में शैव, वैष्णव, जैन सभी हैं। विविधता में एकता की हमारे इस राष्ट्र ने चरितार्थ किया। हम चाहते हैं कि आगे भी इसी तरह एक होकर राष्ट्र की समृद्धि में महायक होंगे। 'हम सभी जानते हैं कि हमारा यह शरीर नश्वर हैं। खुद-ब-खुद एक दिन इसे नष्ट हो जाना हैं। सल्लेखना व्रत धारण कर हम स्वयं चाहे इसे त्याग भी सकते हैं। इसलिए कौन पहले जाएगा कौन बाद को, यह कहा नहीं जा सकता। उम्र के खयाल से भावी आचरण के लिए अभी हम कुछ सूचना देना चाहेंगे। कोई भी इसे अन्यथा नहीं लेंगे। जिस सिंहासन पर हम इस समय बैठे हैं, राजकुल की नीति के अनुसार वह हमारी प्रथम पट्टमहादेवीजी के प्रथम पुत्र को मिलना चाहिए। यदि उनके पुत्र न हो तो उसके बाद की रानी के पुत्र को मिलना चाहिए। यो कुल की इस रीति को आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमने श्रीवैष्णव का आचरण किया, इसलिए आगे चलकर यह सिंहासन शनैशन का ही हो यह विचार इस वंश की परम्परा के विरुद्ध होगा। उसी तरह पट्टमहादेवी के पद की प्राप्ति भी विवाह-क्रम के अनुसार ही होगी। वर्तमान पट्टमहादेवी के बाद रानी बम्मलदेवी, उसके बाद रानी राजलदेवी, उसके बाद रानी लक्ष्मीदेवी। एक सिंहासन के लिए एक महाराज, एक पट्टमहादेवी होंगे—यह सबको विदित हो। मूलतः यही राजकुल को रीति है। इसी का ज्यों-का-त्यों पालन होना चाहिए। "इस विजयोत्सव में हम एक और सूचना देना चाहेंगे। अब से कुमार बल्लाल राज्य के युवराज होंगे । जब तक हम जीवित हैं यानी उनके सिंहासनारोहण करने तक, युवराज युवरानी के साथ हमारे राज्य के पश्चिमी और बलिपुर के क्षेत्रों में, शशकपुर में जहाँ हमारे वंश का विकास हुआ, रहकर हमारे प्रतिनिधि की हैसियत से राजकाज संभालते रहेंगे। अभी हमने छोटे बिट्टिदेव को राज्य के पूर्वी हिस्से में चोकिमय्या की देखरेख में अनुभव पाने के उद्देश्य से नियुक्त किया था। अन्न वह भी हमारे प्रतिनिधि की हैसियत से उसी पूर्वी भाग का शासन सँभालेंगे। छोटे राजकुमार विनयादित्य को अभी और अनुभव पाना है। इसलिए वह पट्टमहादेवी के साथ राजधानी में रहें, या चाहें तो युवराज के साथ भी रह सकते हैं। वालक नरसिंह को अभी कोई दायित्व नहीं दे सकते। फिर भी आगे चलकर उसे भी इस राजघराने की कीर्ति को सँजोये रखना है। अत: वह राज्य के दक्षिणी भाग में, फिलहाल नाममात्र के लिए हमारे प्रतिनिधि बनकर रहेंगे। राज्यकाल के निर्वहण करने योग्य बनने तक वह अपनी माँ और उस विभाग के दण्डनायक की देखरेख में रहेंगे। यों मध्य भाग, जो राज्य के हृदय के समान है, तथा पूर्व, पश्चिमी, और दक्षिण भागों की व्यवस्था के बाद रहा अब उत्तर का भाग। इस उत्तरी भाग को और विस्तृत एवं समृद्ध बनाने तथा हेहोरे तक राज्य विस्तार करने 414 :: पट्टमहादकी शान्तला : भाग चार

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