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तुम दूसरे लोगों को भी नियुक्त करो। मैं और मेरे साथी इस युद्ध में पोय्सलों को पराजित करने के लिए काम करेंगे। इसमें सफल हो जाओ तो आगे काम आसान हो जाएगा। बाहर पराजय, अन्दर झगड़ा, ऐसी हालत हो जाएगी, तो वे फिर सिर नहीं उठा सकेंगे।' यों उन लोगों को समझाओ। हम बाहर से तुम्हारी मदद के लिए तैयार रहेंगे। राज्य की एकता की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। इस प्रदेश को छोड़कर जब तुम बाहर जाने लगो तब यह बताते जाओ कि किस-किसने इस काम में हाथ लगाया है, और क्या सब बातें मालूम पड़ीं हो सका तो हम उनके नामोनिशान मिटा देंगे।''ठीक है', कहकर मैंने उनको भेज दिया। मुझमें एक तरह से भय पैदा हो गया। मुझे पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहिए था। मैंने सोचा कि अब किसी तरह इससे छूट जाऊँ तो जान बचे। फिर अपनी इच्छा से मैं राजधानी की ओर चल पड़ा।"
"राजधानी की ओर चल पड़ने का कोई कारण भी था?" नागिदेवण्णा ने पूछा ।
"हाँ । पट्टमहादेवीजी की गुप्त-हत्या का षड्यन्त्र चला हुआ था। पहले की यह बात राजमहल में बता देने की इच्छा थी, इसलिए राजधानी आया।"
"गुप्तहत्या का षड्यन्त्र ? या इस तरह के षड्यन्त्र के होने का झूठा प्रचार ?" "झूठा प्रचार कर फिर गुप्त रूप से हत्या करना ही उन लोगों का लक्ष्य था।"
"इस षड्यन्त्र के रचने के लिए सिंगिराज, गोज्जिगा आदि की ही मुख्य भूमिका है?"
"उनकी मदद करने के लिए कुछ अज्ञात श्रीवैष्णव भी तैयार थे।" "तुम्हें मालूम है कि ये कौन हैं?" गंगराज ने पूछा। "यदुगिरि के कुछ श्रीवैष्णव ।" "कैसे मासूम कि के यदुगिरि के ही हैं?" "वे तलकाडु आये थे। तलकाडु में ही षड्यन्त्र की रूपरेखा बनी।" "तुमको यदुगिरि ले जाएँ तो तुम उन षड्यन्त्रकारियों को पहचान सकोगे?" "सबको न भी पहचान सकूँ, फिर भी कुछ को अवश्य पहचान लूंगा।" "इन षड्यन्त्रकारियों का राजमहल में प्रवेश कैसे सम्भव हो सकता था?"
"पट्टमहादेवीजी अंगरक्षकों से घिरी रहनेवाली नहीं हैं। जनता के साथ मिलनेजुलने का स्वभाव है इनका, इसलिए उन्होंने यह सोचा था कि यह कार्य आसानी से हो जाएगा।"
मादिराज ने पूछा, "तुमने पहले कहा न कि छोटी रानी और पट्टमहादेवीजी, इन दोनों के बीच खोट पैदा करना उनका एक सूत्र था।"
"हाँ" "अब तुम बता रहे हो कि हत्या का षड्यन्त्र सत्य है?" "जिन लोगों के कोई निश्चित सिद्धान्त नहीं होते, उनको जो सूझे, वही सिद्धान्त ।"
380 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार