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शिवजी हैं। इस प्रान्त में रहनेवाले हम सबके लिए यही प्रेरणास्त्रोत हैं। एक ही प्रस्तरखण्ड के चारों ओर चार तरह की आकृतियाँ रच देनेवाले उस परमात्मा शिव की यह सृष्टि कितनी भव्य हैं। कितनी व्यापक है! इस कृति में कैसी सांकेतिकता निहित है ! उस महान् शिल्पी के सामने हम क्या चीज हैं ?" जकणाचार्य ने कहा ।
"वह केवल प्रस्तर में संकेत को रूपित करनेवाला ही शिल्पी नहीं, अन्तरात्माओं को भी रूपित कर मिला देनेवाला शिल्पी है। हम और पट्टमहादेवीजी दोनों एक साथ इस पहाड़ पर यह दूसरी बार आ रहे हैं। प्रथम बार के उस प्रथम दर्शन को हम आजीवन भूल नहीं सकेंगे। शायद पट्टमहादेवीजी का भी यही अनुभूति हैं । बेलुगोल में जो अंकुरित हुआ, यहाँ वह विकसित हुआ। तब हम दोनों के मन में राजकाज की चिन्ता ही नहीं थी। आप लोगों की तरह हम भी अपनी-अपनी वैयक्तिक आकांक्षाओं में प्रवृत्त थे। तब हम निश्चिन्त थे, किसी प्रकार का दायित्व नहीं था। वह सब स्मरण हो रहा है।" ब्रिट्टिदेव ने कुछ भावुक होकर कहा ।
जकणाचार्य ने कहा, "हमें इस वृत्तान्त को सन्निधान के मुँह से ही सुनने की अभिलाषा है।"
"पट्टमहादेवीजी की स्मरण शक्ति हमसे अधिक अच्छी है।" ब्रिट्टिदेव ने कहा । "सन्निधान के मुँह से सुनने को मेरा भी जी कर रहा है।" शान्तलदेवी ने कहा । एक तरह से अब निर्णय हो ही गया ।
राजधानी से बलिपुर लौटनेवाले हंग्गड़े परिवार के साथ स्वयं ब्रिट्टिदेव और रेविमय्या का बेलुगोल जाना, वहाँ से शिवगंगा आना आदि सभी घटनाएँ बड़ी दिलचस्पी से बिट्टिदेव ने कह सुनार्थी। राजदम्पती का मन वास्तव में अतीत के उस वाताबरण एवं परिसर में विचरने लगा था। अन्त में कहने लगे, "वह गुजरा हुआ समय अब लौटने का नहीं। राजनीतिक दबाव में फँसकर हम कई बार जानबूझकर अविवेकपूर्ण काम कर बैठते हैं। उनका परिणाम जब कभी असह्य हो जाता है। जब मानसिक शान्ति नहीं रहती तो सदा युद्ध में ही लगे रहने की इच्छा होती है।" बिट्टिदेव ने कहा ।
"शान्तिधामों में युद्ध की बात ही क्यों ? कूड़ली, बेलुगोल, शिवगंगा इन तीनों स्थानों ने मुझे तो बहुत शान्ति प्रदान की। यहाँ मुझे पारलौकिक चिन्तन को छोड़कर अन्य कोई बात मन में आती ही नहीं। शिल्पियों द्वारा निर्मित ये मन्दिर भी तीर्थो की तरह ज्ञान और शान्ति प्रदान करें; एक श्रेष्ठ है और दूसरा हीन- इस तरह का भेदभाव फैलाने में सहायक न बनें।"
"यह क्या देवी, अचानक यह श्रेष्ठ अश्रेष्ठ की अनावश्यक बात तुम्हारे मुँह से क्यों निकली ? क्या राजधानी में कोई ऐसी खास बात हुई है ?"
"वहाँ जाने पर सन्निधान को आप ही ज्ञात हो जाएगा। इस तरह के पवित्र स्थानों में लौकिक विषयों पर विचार न हो हो तो अच्छा। यहाँ के प्रशान्त वातावरण
396 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार