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प्रकट हुआ कि वही...जो अब तलकाडु में धर्मदर्शी हैं।"
"तो जब वे वहाँ आये तब तुमने धर्मदर्शी को नहीं देखा?" "कहा कि जानते हैं; शायद उनसे उसकी भेंट न हुई हो!" "किसी को पता न लगे, इस तरह से यदि मिले हों तो?" "मैं इस बात को नहीं जानता।" "तो यह बात कैसे मालूम हो सकती है?"
"सिंगराज और गोलिगा से ही दर्याप्त कर सकते हैं या धर्मदर्शी से ही दर्याप्त की जा सकती है।"
"वह तो बाद की बात है। हत्या करने के लिए किसी की मदद लेने की बात सोची गयी थी?"
"छोटी रानी की कुछ दासियों से मदद लेने की बात सोची थी।" "नाम मालूम हैं उनके ?"
"ना -II - शाना कहा कि वे छोटी रानी की बहुत आत्मीय हैं। उनकी आपसी बातों से ऐसा लग रहा था।"
"इस सन्दर्भ में छोटी रानी के बारे में भी कोई बात निकली थी?" "हाँ।" "किस प्रसंग में? क्यों?"
"इस काम में सफलता मिल जाए तो छोटी रानी बहुत खुश होंगी, यह सिंगराज ने उन दासियों से कहा था।"
"वे दासियों स्वयं छोटी रानी से जानकर निश्चय कर ले सकती थीं न?"
"सिंगराज ने कड़ी मनाही कर रखी थी कि इस बात को उनके सामने न छेड़ें। अगर कहीं कुछ छेड़ने की बात मालूम हो जाए, तो तुरन्त नौकरी से हटा देने का डर दिखाया था।"
"तो बात यही हुई कि तुमने उन दासियों को देखा है।"
"देखा है। पहचान भी लूँगा। नाम मालूम नहीं। किसी भी अवसर पर उन दासियों का नाम प्रकर नहीं हुआ।"
"किस तरह से और कब हत्या करना, आदि बातों पर चर्चा भी हुई होगी?"
"चर्चा तो नहीं हुई। इस बारे में उसने उन दासियों से यह कहा था कि उसके लिए उसे एक आसान तरीका मालूम है, और उसे ठीक समय पर उनको गुप्त रूप से बता देगा।"
इस लम्बी बहस के दौरान विनयादित्य की दृष्टि कभी धर्मदर्शी पर जाती, कभी छोटी रानी की ओर । क्षण-क्षण पर उसका पारा चढ़ता जा रहा था।
पट्टमहादेवीजी मौन बैठी रहीं, मगर कभी-कभी उनकी दृष्टि विनयादित्य पर
382 :: पट्टमहादेवी शास्तला : भाग चार