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"ठीक है, पहाहादेवी की हत्या करने से जनको त्या लाभ होगा?"
"उन लोगों की मान्यता है कि पट्टमहादेवी तो महाराज की अत्यन्त प्रिय हैं। असल में वे ही स्फूर्ति देती हैं महाराज को। और तो और, वे ही महाराज की शक्ति हैं। यदि वे नहीं हों तो महाराज रहें भी तो न रहने के बराबर । इसलिए उन लोगों ने ऐसा सोचा होगा।"
"उनके काम की यह तुम्हारी व्याख्या है, यही न?"
"उन लोगों के साथ रहने की वजह से मेरे मन में यह धारणा पैदा हुई है। न्यायपीठ इसे ओ माहे, समझे।"
"और आगे?"
"यह षड्यन्त्र न हो, और उन्हें सफलता न मिले, यह बताने के लिए ही मैं राजधानी आया। महासन्निधान के युद्धक्षेत्र में जाने की बात मालूम हुई। सीधा बंकापुर के युद्ध-क्षेत्र में गया। छोटे दण्डनायक बिट्टियण्णाजी से बात की। इस बीच वहाँ युद्धक्षेत्र में छोटी रानीजी की हत्या के षड्यन्त्र का समाचार फैल चुका था। उन्हें राजधानी में बुलवा लेने का आदेश सन्निधान ने भेजा है, यह ज्ञात हुआ। इससे मालूम पड़ा कि ये नीच सक्रिय हैं, कार्य में प्रवृत्त हैं। छोटे दण्डनायक जी की मदद से मैंने महासन्निधान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया। मैंने सारी बात महासन्निधान के समक्ष निवेदन की। छोटे दण्डनायकजी ने मुझे बाद में काम पर नियुक्त कर लिया। इस आक्रमण में छोटे दण्डनायक की जो योजना थी, उसके अनुसार प्राणों की परवाह तक न करके मैंने काम किया। हमारी जीत के बाद सीधे पट्टमहादेवीजी से यह बात कहने के इरादे से, महासन्निधान ने पत्र देकर मुझे यहाँ भेजा था। तब से यही हूँ।" ।
"तुमने कहा न कि पट्टमहादेवीजी की हत्या का षड्यन्त्र रचने के प्रयोजन से यदुगिरि से श्रीवैष्णव आये थे, उनके नाम तुम्हें स्मरण नहीं?" नागिदेवण्णा ने कण्णमा से पूछा।
"कुछ नाम याद हैं।" "बताओ।" "तिरुनम्बि, शटगोप, तिरुनारायण, नल्लतम्बि।" "और कुछ नाम स्मृति में हैं?" "नहीं" "ये नाम याद रहे, दूसरे लोगों के नहीं, इसका कोई कारण है ?"
"कुछ नहीं। सुना कि ये सब नये मतान्तरित श्रीवैष्णव हैं। और ये नवीन श्रीवैष्णव धर्मदर्शी के बहुत चाहनेवालों में से हैं।"
"कौन धर्मदर्शी?" "मुझे मालूम नहीं। परन्तु वह सिंगराज जब तहकीकात करता था तब इतना
पट्टमहादेवी शान्तला : भाय थार :: 38।