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सन्निधान की मुद्रा थी। हमेशा की तरह दण्डनायक की मुद्रा नहीं थी। मादिराज ने कहा, "यह महासन्निधान का पत्र है। शायद पट्टमहादेवीजी का है।" ___ "क्या कहला भेजा है ?'' शान्तलदेवी ने गुप्तचर से पूछा।।
"महासन्निधान ने कहा है कि राजमहल के किसी भी अधिकारी के हाथ में दे देना, उन्हें पालुम हो जाएगा।" गुप्तचर बोला।
"ठीक है। तुम जाकर बाहर बरामदे में बैठो। जरूरत होगी तो बुलवा लेंगे।" शान्तलदेवी ने कहा। वह प्रणाम कर बाहर चला गया। शान्तलदेवी ने हाथ बढ़ाया। मादिराज ने पत्र उनके हाथ में दे दिया। उन्होंने उसे खोलकर देखा । देखकर वह चकित हो उठीं। तुरन्त कुछ बोली नहीं। मादिराज भी मौन हो देखने लगे।
दो-चार क्षणों के बाद विनयादित्य ने कहा, "पत्र का विषय यदि मुझे जानने की आवश्यकता नहीं तो मैं जाऊँ?"
शान्तलदेवी ने पत्र बेटे की ओर बढ़ा दिया। उसने खोलकर पढ़ा। शान्तलदेवी ने कहा, "जोर से पढ़ो।" विनयादित्य पढ़ने लगा :
"अभी तक जैसे प्रतीक्षा करते बैठे रहे, अब यह न होगा। तुरन्त जयकेशी पर हमला कर देने का निर्णय किया है। इस काम में सफल होने के आसार दिखाई देते हैं । यह युद्ध के बारे में साधारण तौर से भेजा जाने वाला समाचार है। युद्ध शिविर में एक विचित्र तरह की वार्ता उड़ रही है। तलकाडु में रानी और राजकुमार की हत्या का भारी षड्यन्त्र चला हुआ है, ऐसी सूचना मिली है। इसलिए तुरन्त सुरक्षा-व्यवस्था के साथ उन्हें राजधानी में बुलवा लें। और जब तक हम लौटें नहीं, तब तक रानी और सजकुमार पट्टमहादेवी की देख-रेख में रहे। इसके साथ एक और समाचार भी मिला है। उसे इस पत्र में न लिखने का हमने निश्चय किया है। मिलने पर बताएँगे। इस सपाचार को सुनकर और उसकी रीति-नीति को देखकर ऐसा लगता है कि इस सबका असली लक्ष्य भेद-भाव पैदा करना और एकता को तोड़ना है। इसी तरह से पता नहीं
और क्या-क्या खबरें फैली हैं। हमें यही सोचना पड़ेगा कि हमारा गुप्तचर दल कुछ तटस्थ है । गुप्तचर दल को अधिक सतर्क रहने के लिए तुरन्त आदेश दें। युद्धक्षेत्र में जो सामग्री भेजी जाती रही हैं, वह यथावत् तब तक जारी रहे जब तक यहाँ से न भेजने का आदेश मिले।"
"इस पत्र से तो एक तो निर्णय हुआ। अब सन्निधान को और कुछ बताने की जरूरत नहीं। वे सीधे हमले की तैयारी में हैं, इसलिए यहाँ हम अपनी सूझ-बूझ के अनुसार काम करें। महाप्रधानजी को यह खबर दे दें। तलकाडु से रानी और राजकुमार को राजधानी में बुलवाया जा रहा है। यह सूचना महासन्निधान के पास भेज दें। अब आप जा सकते हैं।"इतना कहकर शान्तलदेवी ने घण्टी बजायो। मादिराज चले गये। शान्तलदेवी वहीं मन्त्रणागार में बैठी रहीं। विनयादित्य भी वहीं साश्य रहा। हरकारा द्वार
पट्टपहादेवी शान्तला : भाग चार :: 325