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करके, किसी तरह युक्ति या तन्त्र के बल पर उसको सफल बनाने की कोशिश करने का साहस उनमें नहीं है। जब कभी उनके पिता कुछ इस तरह की बात छेड़ते हैं तो वे उनपर आग-बबूला भी हो जाती हैं, आदि-आदि।' जितना वह इन बातों को समझती है, जो समझा है. उसमें जितना उसके दिमाग में आता है, और जिस तरह उसका अर्थ वह लगाती है, उतना उसे सुनाती रहती। इन कही सुनी बातों के आधार पर अन्दर ही अन्दर जलनेवाली आग को हवा देने पर वह भड़क सकती है, यही समझकर रानीजी के मन में हत्या का भय पैदा करके पट्टमहादेवीजी पर सन्देह पैदा करना, पट्टमहादेवीजी के मन को बिलोडना, युद्धरत सन्निधान के मन में आतंक पैदा करके उनकी क्रियाशक्ति को कुण्ठित करना, यह सब ध्यान में रखकर इस तरह की कार्रवाई इसने की है। इस कार्रवाई के पीछे इसी का दिमाग काप कर रहा था। बाकी सब तो इसके हाथ की कठपुतली हैं, जैसा नचाये वैसा नाचनेवाली। काफी पैसा मिल जाता इसलिए वे खुश हो जाते। जो कहा उसे किया और चुप पड़े रहे। ये सब बातें मैंने उसके अन्तरंग को कुरेद-कुरेदकर जानी हैं। मुद्दला अगर आयी हो तो उसे बुलाकर उससे तहकीकात कर सकते हैं।" बीरगा ने कहा।
'तो जान-बूझकर मुद्दला साथ आने से खिसक गयी?' रानी लक्ष्मीदेवी के मन में सवाल उठा।
धर्मदर्शी अपने चेहरे की विचित्र मुद्रा बनाकर बैठा था। गंगराज ने पट्टमहादेवी की ओर देखा।
"किसी से कुछ कहा, किसी ने किसी को कुछ बताया, इन सब बातों पर हम क्यों ध्यान दें? दुष्प्रचार के काम में ये लोग शामिल हैं, इतनी बात प्रमाणित हो जाए, पर्याप्त है। नहीं तो वे स्वयं मान जाएं, काफी है । मायण, चट्टला, चाविमय्या, वीरगाइन चारों ने इस पर काफी प्रकाश डाला है। इस प्रसंग में न्यायपीठ के समक्ष एक बात कहनी है। चाविमय्या-चट्टलदेवी को किसी से सलाह तक न लेकर, मायण ने स्वयं भेजा था। बाद में मुझे बताया तो सुनते ही उस पर मुझे क्रोध भी आया। इसका कारण था। अफवाह हो सकती है कि पदमहादेवी की गुप्त हत्या का षड्यन्त्र चल रहा है, सो भी तलकाडु की तरफ से। केवल इतने से डरकर जल्दी में किसी से सलाह तक लिये बगैर, गुप्तचरों को भेजना मुझे टोक नहीं लगा। हमारी ही रानी जब वहाँ मौजूद हैं और हमारे राजमहल के व्यवस्था-अधिकारी के रहते हुए जो भी काम कराना हो, उन्हीं के जरिये कराना न्यायसंगत है। उन्हें बिना बताये, स्वतन्त्र रूप से गुप्तचरों को भेजने का यही पत्तलब होता है कि हम उन पर विश्वास नहीं रखते। इस तरह का विचार उन लोगों के मन में उत्पन्न हो जाए तो मात्सर्य का भाव उठ सकता है। ऐसा नहीं होना चाहिए, इसीलिए चाविमय्या और चट्टलदेवी के यहाँ पहुंचने से पहले ही वापस बुला लेने का आदेश मायण को दिया गया। अब यहाँ जो बातें स्पष्ट हुई उनसे
पटुमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 351