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"कल-परसों के इस तमाशबीन की बात पर विश्वास भी कैसे करें?" दूर पहरे पर रहनेवाले ने कहा।
"बीच में नहीं बोलना चाहिए।" "झूठ बोले तो?"
"झूठ-सच का निर्णय करनेवाले तो हम हैं । इसने जो बात कही वह सच है। चट्टला-मायण की उस समय की कहानी हम जानते हैं। परन्तु यह बात तुमको मालूम कैसे हुई?' गंगराज ने पूछा।
उस गवाह ने सर पर बँधा लाल कपड़ा उतार फेंका। पीठ पर केशराशि फैल गयी। चिपकायो मूंछ निकाल फेंकी। भौह पर चिपकाये घने बाल निकाल फेंके। कामदार कमरबन्द निकाल दिया। पहना हुआ लम्बा चोगा उतार दिया। इस सारी क्रिया को सभा चित्रलिखित-सी देखती रही। इस अफवाह का प्रसारक नेता चकित होकर देखता रह गया।
सहज स्त्री-कण्ठ से आवाज निकली ' मैं चट्टला हूँ।"
वह नायक अचकचा गया। रानी लक्ष्मीदेवी हक्का-बक्का रह गयो । बिनयादित्य की आँखें चमक उठीं।
"अब क्या बोलते हो?" गंगराज ने प्रश्न किया। वह निरुत्तर हो खड़ा रहा।
"इसकी टोली में पांच लोग हैं। दो कौन हैं सी तो मैंने बता दिये हैं। शेष तीनों में दो हमारे राज्य के साधारण श्रीवैष्णव प्रजाजन हैं। ये हमारे धर्मदर्शीजी के परमभक्त हैं। तीसरा राजधानी के गुप्तचर दल का बीरगा है। यह बहुत समय से इस प्रदेश में गुप्तचरी के काम में लगा है। इस सारे कुतन्त्र का पता लगाने के लिए इन लोगों में शामिल हो गया था। हमारे गुप्तचर दल का विश्वस्त व्यक्ति है यह।"
"तो पहले जो तमाशबीन आया, वह चाविमय्या है?"
"जी हाँ। और हमें मुडुकुतोरे की नदी के पास इस टोली की खबर देनेवाले वृद्ध वेषधारी ये मेरे मालिक ही हैं।"
"ओफ, मायण है?"
"हाँ। इन्होंने आदेश दिया था : जिस किसी भी युक्ति से इन्हें तलकाडु ले आओ, फिर मैं ही इन्हें बन्दी बनाकर व्यवस्था-अधिकारी को सौंप दूंगा। परन्तु इन लोगों ने दूसरा मार्ग पकड़ लिया। यदि हम जिद करते तो ये लोग हमारे हाथ से छूट जाते । इस डर से हमें कुछ दूसरा ही उपाय ढूँढना पड़ा। हमने अपने गुप्तचर दल के बीरगा से भी बातचीत नहीं की। उसे भी पता नहीं चला कि हम कौन हैं । जब हमने उसे इस टोली में देखा तभो हम कुछ आश्वस्त हो गये थे कि ये चिड़ियाँ उड़ नहीं पाएँगी। शेष बातों को जानकारी यह न्यायपीठ बीरगा से प्राप्त कर सकती है।"
पट्टमहादेवी शास्तला : भाग चार :: 349