Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 362
________________ आओ, पता लगाएँ कि बात क्या है।" 44 " ठीक, चलो।" दोनों बगल की सीढ़ी से ऊपर चढ़ने लगे। बहुत सावधानी से कदम बढ़ा रहे थे। इधर ये लोग उनकी ओर देखते रहे कि आगे वे क्या करते हैं। बहुत देर तक वहाँ मौन ही रहा। फिर बियिण्णा बिना कुछ आवाज किये चुपचाप चार सिपाहियों को साथ लेकर आगे बढ़ा। जैसी उप्पीट थी वहाँ के हो रहे थे। एक को भेजकर सबको बुलवा लिया। बम्मलदेवी के कहे अनुसार कार्यक्रम चला। द्वार पर के चारों पहरेदार बन्दी बना लिये गये। साँस लेते थे, मगर चिल्ला नहीं सकते थे। इन काली ओढ़नी के लोगों को देखकर वे परेशान हो गये। एकदम चकित-से होकर देखते रहे कि क्या हो रहा है। उन आठों शहतीरों को, जो द्वार से लगे थे, ऊपर उठा दिया गया। विट्टिया ने कहा. 'अब सन्निधान और रानीजी अंगरक्षकों के साथ शिविर लौट जाएँ। शेष काम हम वक्त रहते कर लेंगे। " 4 थोड़ी आनाकानी के बाद विट्टियण्णा की बात महाराज को माननी पड़ी। महाराज और रानी चम्मलदेवी के लौट जाने के बाद विट्टियण्णा ने अपनी टोली की मदद से उन शहतीरों को किले पर से नीचे की खन्दक में गिरा दिया। इसके बाद आधी टोली को दो भागों में बाँट दिया और फाटक की छत के दोनों ओर पहरे पर रखकर, शेष आधी टोली को अपने साथ लेकर किले के अन्दर की ओर उत्तरा । द्वार पर के चारों पहरेदार नींद में पड़े थे। नगर का गश्ती सिपाही दल द्वार की ओर आता हुआ दिखाई पड़ा। बिट्टिया के आदेश के अनुसार उसके साथ के सब काली ओढ़नीवाले दीवार से सटकर बिना हिले-डुले खड़े हो गये। उस स्तब्ध रात में थोड़ी देर और बितानी थी, मुर्गे के बाँग देने तक पहरेवाले द्वार तक आये और सोये पड़े लोगों को सचेत कर फिर किले की बगल आगे बढ़े ही थे कि एकाएक चकित हो देखने लगे कि ये दीवार के पत्थरों से सटी चीजें क्या हैं? पहले तो वहाँ कुछ नहीं था, यह नयी क्या चीजें आ टपकी ? एक ने पूछा भी, "वह क्या हैं, जो दीवार से सटाकर खड़ी की गयी काली काली दिख रही हैं ? इसे पहले देखा हुआ-सा स्मरण नहीं होता।" I T दूसरा बोला, "हो सकता है, तुम्हारा ध्यान उस तरफ नहीं गया हो। पता नहीं, कितने दिनों से वहाँ खड़ी हैं ! " "कितने दिनों से ? इस रात हम यह पाँचवाँ चक्कर लगा रहे हैं, पहले तो नहीं दिखी ! इस बार दिखी तो आश्चर्य न होगा ? आओ, देख ही लेते हैं कि वह क्या हैं। " एक ने कहा । उन सभी के हाथ में तोमर थे ही। वे बिट्टियण्णा की टोली की ओर बढ़े। इन्होंने भी बात सुन ली और पहरेवालों को अपनी ओर आते देखा। बिट्टिया 366 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार :

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