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"सलकाडु प्रदेश में।" "वही तुम्हारा धन्धा है?" "वह तो मेरी आनुवंशिक वृत्ति है।" "उसे छोड़कर इस गुप्तचरी के काम में क्यों लग गये?" "यह एक संयोग है।"
"कुछ स्पष्ट रूप से बताना होगा। स्पष्ट रूप से बताने के बहाने झूठ नहीं बोलोगे, सच-सच कहना होगा।"
"मैं पोय्सल प्रदेश का हूँ। मेरी निष्ठा मेरे इस प्रदेश की धरोहर है।" "किसय के निवासी हो?' "सन्तेमरल्लि ।" "वह चोलों के कब्जे में था न?"
"हो सकता है। हम जन्मतः कन्नड़ भाषा-भाषी हैं। गंगरसजी देश के प्रभु रहे न? हम साधारण प्रजा है; हम गाँव-गली नहीं छोड़ सकते । राज करनेवाले राजा हमें चाहे किसी तरह का कष्ट दें, चाहे हम पर अविश्वास करें तब भी हमें सत्र सहकर जो कहें उसे करते रहना होगा।"
"तुमने अभी अपने को घुमक्कड़, नाटक खेलनेवालों के वंश का बताया और अब गाँव-गली का बताते हो?"
"सच है। हम घुमक्कड़ एक जगह नहीं टिकते। फिर भी गंगराजाओं के जमाने में हमारे दादा इस प्रदेश में आकर बसे थे। उससे भी पहले सुना है कि आसन्दी प्रदेश में रहे। यों हमारा घराना घुमक्कड़ होने पर भी, उसकी जड़ें इसी प्रदेश में हैं।"
"ठीक, आगे बताओ।"
"चोलों को हराकर हमारे प्रभु ने तलकाडु प्रदेश को जब अपने कब्जे में कर लिया, तब हम सब पिंजड़े से छूटे पछी जैसे आजाद हुए थे। चोलराज के प्रतिनिधि
आदियम और उसके चेलों के पंजे से छूटकर जब आजाद हुए तब हमने जैसे आनन्द का अनुभव किया, वैसा शायद राजधानी के लोगों ने भी नहीं किया होगा। एक दशाब्दी बीत गयी उनसे छुटकारा पाये। हम आराम से रह रहे थे। एक दिन अचानक आदियम के चेले सिंगिराज और गोज्जिगा के पंजे में फंस गये। उस समय मुझे मालूम नहीं पड़ा कि ये आदियम के चेले हैं। ये नाट्यकथा कहने की हमारी शैली पर रीझ गये और मेरी पीछे लग गये। मुझे पैसे का लालच दिखाया। अपने कहे अनुसार करने के लिए प्रेरणा दी। हम भी पैसे के लालच में पड़कर, बात को समझे बिना उनका कहा मानते रहे। मगर जब उन्होंने अपना उद्देश्य बताया तो मेरी छाती फट गयी। मैं इनकार कर सकता था। मगर डर था कि यदि दूसरा कोई उनकी मदद करेगा तो क्या होगा। इसलिए मैंने यह निश्चय कर लिया कि उन लोगों को पूरा-पूरा समझू और उनके इस षड्यन्त्र
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 377