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पर विद्वेष के कारण उनसे बदला लेना चाहते हैं। यह भी सुना है कि पट्टमहादेवी और उस नयी रानी में अनक कर दी है। यी सनी के इस को बढ़ाने की कोशिश में लगे हैं। राजमहल यदि औरतों के झगड़ों का आखड़ा बना तो सब चौपट समझो। राज्यलक्ष्मी खिसक जाएगी। हमारे प्रभु बड़े बुद्धिमान् हैं, इसी कारण सभी को दूर-दूर अपनी-अपनी जगह रखा है, और जिसका जो स्थान हैं उसे अधिकार देकर वहीं बिठा रखा है। इसलिए संघर्ष नहीं होने पाता । सब एक साथ रहें तभी न संघर्ष होगा ?**
"है कोई घर जहाँ आटा गीला न हुआ हो ? बड़ों की बातों से हमें क्या सरोकार ? वे अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखने और उसे बढ़ाने के लिए लड़ाई करते हैं। इधर हम जैसे साधारण लोगों को सब तरह की तकलीफें भुगतनी पड़ती हैं।"
"
'इसे तकलीफ नहीं कहनी चाहिए। राष्ट्ररक्षा हेतु आत्म-समर्पण के लिए तैयार रहना चाहिए।"
" रहना चाहिए, यह सच है। पर हम आपस में क्यों लड़ें ? यही समझ में नहीं आ रहा है।"
" हम लड़ कहाँ रहे हैं ?"
"हम अलग, पोय्सल अलग, चालुक्य अलग-ऐसी बात क्यों ?"
"हाँ, और क्या ?"
" वे भी कन्नड़ भाषा-भाषी हैं, हम भी वही हैं। वहाँ भी जैन, शैव, बौद्ध वेदान्ती, दार्शनिक हैं। हमारे यहाँ भी हैं। भाषा, संस्कृति सब एक फिर झगड़ा क्यों ? एक समय था जब पोय्सलराज चालुक्यराज के कहे अनुसार चलते थे। इन दोनों में परस्पर बड़ा सहयोग था। अब यह विद्वेष क्यों ?"
"पोय्सल चालुक्यों के सामन्त थे । सामन्त यदि स्वयं अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दें तो चुप कैसे रहा जा सकता है ?"
'बेटा हो जब बालिग हो जाय तो उससे मित्र की तरह बरताव करना चाहिए, यही लोकरीति है। ऐसी हालत में एक राज्य प्रगति करे तो उसे मान्यता देकर उससे प्रेम और मैत्री बनाये रखें, तो कितना अच्छा हो !"
"हमारी पिरियरसीजी को पट्टमहादेवीजी पर अपनी पुत्री का सा वात्सल्य हैं। सुना है कि उन्होंने चक्रवर्तीजी से कहा भी कि हममें आपसी द्वेष न हो। परन्तु कुछ बुरे सलाहकार होते हैं न? वे उकसाते हैं, चक्रवर्ती के कान भरते रहते हैं।"
"ऐसे चुगलखोरों की बातें सुनी ही क्यों जातीं ? अब क्या कहा जाए ?" "कोई सुन न ले। नहीं तो बच्चू, देश निकाला ही मिलेगा।"
" देश निकाले का दण्ड दें तब भी इसी हवा की सॉस होगी न ? वे कुछ टुकड़े डाल देते हैं, हम मेहनत करते हैं बस ! हमारी राय का कोई मूल्य ही नहीं ?"
364: पट्टमहादेवी शान्तला भाग प्यार