________________
ही अपना काम है।"
"काम चाहे इतना हो या उतना। साला पेट भर खाना भी नहीं मिलता। अधपेट रहकर कितने दिन काम कर सकेंगे?"
"यह दशा कब तक रहेगी? चक्रवर्ती के दामाद जयकेशी गुप्तमार्ग से गये हैं। उन्हें गये करीब-करीब एक महीना गुजर चुका । जल्दी ही कल्याण से भारी सेना आने वाली है। वह आ जाए तो अन्दर से और बाहर से दोनों तरफ से हमला करके इस पोय्सल सेना को खतम कर सकते हैं?"
"सो तो बाद की बात है। अभी तो आधा-पेट खाकर गुजारना है न?"
"गुजारना ही पड़ेगा। नहीं तो नमकहराम बनें क्या? तुमको हाल का समाचार शायद मालूम नहीं।"
"क्या?"
"उस पोय्सलनरेश ने अपना धर्म बदल लिया है। तभी से वहाँ के राजमहल में बहुत अनबन चल रही है। इन दण्डनायकों में भी आपस में झगड़े चल रहे हैं।"
"अरे जा, तुझे कुछ मालूम भी है? देख, जब तक पट्टमहादेवीजी है तब तक ऐसी बातों के लिए गुंजायश ही नहीं। सारी जनता उनको माता ही मानती है।"
"परन्तु उस महाराज ने खुद तो अपनी जात बिगाड़ ली, ऊपर से उसी जाति की लड़की से शादी भी कर ली। क्यों ? देखो भाई, मनुष्य चाहे कोई हो, कहीं हो, स्वभाव तो एक-सा ही होगा। पैसा और अधिकार के लालच में वह सब कुछ करने को तैयार हो जाता है।"
"खैर, इन सब बातों से हमें क्या मतलब? कहते हैं कि करनेवाले का पाप कहनेवाले को लगता है। जिस दिन हम अपने हाथ में तीर-तलवार लेने को तैयार हुए, उसी समय यह मालूम हो गया था कि हमें किसी-न-किसी दिन इन्हीं के हाथों मरना
"क्या कह रहे हो? तीर-तलवार लेनेवाले सभी इसी तरह नहीं मरा करते। यों निराशावादी नहीं होना चाहिए। हाथ में काम आने पर उसे साधने तक हमें आशा बनाये रखना चाहिए। तभी फल मिलता है।" ___"महत्त्वाकांक्षा रखनेवाले बड़ों के लिए है यह सब । हम जैसे मामूली पहरेदारों के लिए इन बातों से क्या मतलब?"
"ऐसा कहोगे सो कैसे चलेगा? अब हम दोनों को कोई देखनेवाला नहीं, इसलिए हम खटि लेने लगें? ऐसा करना उचित होगा क्या? हमारे लिए अपना कर्तव्य बड़ा
"ठीक। चलो, आगे कदम बढ़ाओ।" "ठीक । एक नया समाचार मिला है। चोलों के पक्ष के लोग अब भी पोसलों
पट्टमहादत्री शान्तला : भाग चार :: 363