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मेरे पास सीटी है। संकेत शब्द क्या होगा सो बता दिया है। उसे सुनते ही पूरी सेना एक साथ द्वार पर पिल पड़ेगी।" बिट्टियण्णा ने कहा।
"ठीक।" बिद्रिदेव ने अपनी सम्मति जता दी।
सब प्रतीक्षा करते हुए बैठे रहे। वे उस रात में काली ओढ़नी के कारण काले पत्थर की तरह दिख रहे थे।
कुछ देर बाद बिट्टिदेव ने धीरे से कहा, "बिट्टी, सेना के शहर में घुसने पर निःशस्त्र साधारण पौर, वृद्ध, बच्चे और स्त्रियों से आदर के साथ व्यवहार करेंगे, यह आदेश दिया गया है न?"
"बिना अनुमति के किसी भी घर में नहीं घुसेंगे और कोई नगर छोड़कर बाहर न भागे, इसका ध्यान रखें-ऐसा आदेश है।'' बिट्टियाणा ने धीमे स्वर में कहा।
__ इतने में दो सिपाही मुद्गर हाथ में लिये पूरब के द्वार की तरफ से दक्षिण द्वार की ओर आते हुए उस धुंधलके में दिखाई पड़े।
"सन्निधान, सिपाही आ रहे हैं। अगर उन्हें शंका हुई तो फिर संघर्ष के लिए हमें तैयार हो जाना होगा। सन्निधान और रानीजी किले से उत्तर जाएँ तो अच्छा। नहीं
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"वह सब अब हो ही नहीं सकता है, बिट्टी । जोर से साँस तक न लें, पूरी तरह ओढ़कर चुपचाप बैठे रहो । देखने के लिए इस ओढ़नी में रन्ध्र हैं ही। संघर्ष हो जाने पर पहरेवालों से लड़कर उन आठों शहतीरों को निकाल देंगे। आगे के बारे में बाद में सोचेंगे।" बीच में बिट्टिदेव ने कहा।
पहरे पर के सिपाही निकट आते दिखे। बड़े तड़के ठण्डी हवा को सांय-साँय आवाज मात्र सुनाई पड़ रही थी। वे दोनों कुछ दूर पर खड़े हो गये। उनमें से एक ने कहा, "अरे, वह क्या है ? ऊपरी छत की दीवार से काला-काला कुछ सटाकर रखा हुआ-सा दिख रहा है न?"
दूसरे ने कहा, "होगा, उससे हमें क्या? हम केवल गश्ती-पहरेदार हैं। अपरिचित कोई दिखे तो तुरन्त खतम कर देने का हमें हुक्म है।"
"फिर भी, कल तो वहाँ ऐसा कुछ नहीं दिख रहा था, आज यह वहाँ कैसे आया?" ___ "ऐ, कल तुम कहाँ गश्त लगा रहे थे? हम दोनों आज से तीन दिन पहले इस पहरे पर कहाँ रहे?"
"अरे हाँ!...मगर तीन दिन पहले यहाँ कुछ था नहीं। आज इसके होने के क्या मायने? सांकेतिक आवाज देता हूँ। दरवाजे के कोने पर के रखवालों में से कोई आएमा, उससे पूछ लेंगे।"
"इन सबसे क्या मतलब? जो काम सौंपा गया है, उतना कर दिया। बस, इतना
362 :: पट्टमहादेवो शान्तला : भाग चार