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"तो फिर आसन्दी जाने की बात क्यों ?"
"सन्निधान मेरी बात मान लें तो इस सबका मौका ही नहीं रहेगा न?"
"सन्निधान के साथ रानी का रहना सहज हो सकता है। लेकिन सन्निधान तम्बू में बैठे रहें, और रानी दुश्मन के किले पर हमला करने जाये यह ठीक होगा ?" " सही और गलत का विचार ही आजकल नहीं होता। हमारे राज्य में इन दिनों चुगलखोरों की संख्या बढ़ गयी है, ऐसा प्रतीत होता है।"
"इस तरह के सोच का कारण ?"
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'आये दिन सुनाई पड़नेवाली अफवाहें हत्या के षड्यन्त्र की झूठी खबरों का
प्रसार। "
" अभी हम किस पर हमला कर रहे हैं ?"
"जयकेशी पर।"
"वही इस सबका कारण है, यही सुनने में आया । " "जी की विट्ठी का यहां
" तो इस बारे में रानी की क्या राय है ?"
"यह सब राजमहल के समधी, वही नामधारी, उसी के हथकण्डे हैं।" " स्वयं पट्टमहादेवी की ऐसी राय नहीं। ऐसे में वस्तुस्थिति की जानकारी के बिना, यहाँ बैठे-बैठे आकर यह राय बना लें तो कैसे होगा ?"
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'युद्ध - शिविर में क्या खबर फैली है ?"
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'यही कि छोटी रानी और राजकुमार की हत्या का षड्यन्त्र चला हुआ है।' 'पट्टमहादेवी की हत्या का षड्यन्त्र चला हुआ है, यह खबर युद्ध शिविर में क्यों नहीं फैली ? जयकेशी को इस तरह की खबर फैलाने से क्या फायदा ?"
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मुझे विश्वास नहीं हो रहा है।"
" वही जाने ।"
"उसे कुछ नहीं मालूम है। बेचारा जान बचाने की चिन्ता में शहर में कहीं छिपकर पड़ा हुआ है, या किसी गुप्त मार्ग से भागकर कहीं और छिप गया है। यह पुराना किस्सा है। सन्निधान अब दूर रहें तब यह खबर फैला दें तो कुछ शंका उठ
सकेगी, फलस्वरूप सन्निधान किसी एक के पक्षपाती भी हो सकते हैं।"
"
"मतलब ?"
'बार-बार ऐसी खबर सुनते रहें तो चाहे मन कितना ही अच्छा हो, वह बिगड़ सकता है।"
" इस तरह की बेकार बातें सुनकर हम किसी के तरफदार बन जाएँगे, यही रानोजी का भाव है ?"
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"
'ऐसा न होता तो तुरन्त छोटी रानी और राजकुमार को राजधानी में बुलवाने का आदेश सन्निधान को यहाँ से भेजने की क्या जरूरत थी ? सन्निधान ने मेरी सलाह तक
पट्टमहादेवी शान्तला भाग बार 357