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चट्टलदेवी ने कहा।
उस टोली का मुखिया यह जानता था कि बीरगा सभी बातों की जानकारी रखता हैं, इसलिए वह कुछ घबरा गया। मौका मिलता तो बीरगा के मुँह खोलने से पहले उसे ही खतम कर देता। उसने बीरगा को इस तरह देखा मानो वह उसे निगल हो जाएगा। पर बीरगा उसके चेहरे को देखकर मुस्करा उठा।
गंगराज ने कहा, " बीरगा साक्षी मंच पर आएँ ।”
बीरगा मंच पर आया और शपथ ग्रहण की।
"जब से तलकाडु का प्रदेश हमारा बना तभी से मैं राजधानी का गुप्तचर होकर उस प्रान्त में रह रहा हूँ। विरोधियों का कार्य-कलापों पर ध्यान देते रहना ही मेरा काम था। कोई खास बात हो तो उसकी खबर देनी थी। वास्तव में मैंने भी इस षड्यन्त्र की बात पहले-पहल सन्तेमरल्लि में ही सुनी और सुनी तमाशबीनों के ही मुँह से। इन्हीं के कहने से मैं इसके सूत्रधार सिंगिराज का शिष्य बना। वास्तव में उसे मुझपर पूरा विश्वास हो गया था। गोज्जिगा से भी ज्यादा । "
" सो क्यों ?"
"सिंगिराज को स्त्रियों की बहुत चाह है। मैं उसकी कामुकता को तृप्त करने के लिए उसके पास स्त्रियों को भेजा करता, और इस बात को गुप्त रखता था। यह बहुत ही नीच काम था, यह मैं जानता था। मगर ऐसा न करता तो इसकी गहराई तक नहीं पहुँच सकता था। इसे चोल राज्य से ही धन मिलता था। मैंने स्वयं सीमा पार कर दो-तीन बार वहाँ से धन लाकर इसे दिया है। चोल अब भी हम पर बहुत क्रुद्ध हैं। हमें खतम कर देना चाहते हैं। हमारे राज्य में भेद पैदा कर लोगों की एकता को तोड़ दें तो उनका काम बन जाएगा, यही सोचकर उन्होंने इस तरह की अफवाह उड़वायी हैं। तलकाडु प्रान्त में छोटी रानी राजकुमार की हत्या और राजधानी के आस-पास पट्टमहादेवीजी की हत्या - इस तरह की अफवाह फैलाकर फिर दूर युद्ध क्षेत्र में सन्निधान तक रानी- राजकुमार की गुप्त हत्या के षड्यन्त्र की खबर इन्होंने ही पहुँचायी है। मैंन स्वयं पूछा कि इस तरह की प्रेरणा कहाँ से पायी ? इसका अन्त क्या होगा ? तो उसने मुझे इतना भर बताया, 'मैंने प्रकारान्तर से कई बातें सुनी हैं। और फिर रानी लक्ष्मीदेवी की खास नौकरानी मेरे वश में है। उसे भीतर की सारी बातें मालूम हैं। छोटी रानी के मन में पट्टमहादेवी के प्रति सोतैला डाह है। वह तो बहुत दिन चलेगी नहीं। रानी के पिता किसी तरह से अपने नाती को सिंहासन पर बिठाना चाहते हैं। ऐसा करेंगे तो यह सिंहासन श्रीवैष्णव सिंहासन हो जाएगा, यही उनकी अभिलाषा है। फिर भी लक्ष्मीदेवीजी पर पट्टमहादेवीजी का हार्दिक स्नेह उनके मन में जब कभी उत्पन्न होनेवाले मात्सर्य भाव को दूर करता रहा है। इसलिए वे अपने पिता की बातों पर ध्यान नहीं देतीं। वैसे उनको यही इच्छा है कि उन्हीं का बेटा सिंहासन पर बैठे। लेकिन विरोध का सामना
350 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार
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