________________
नियुक्त किया जाता है। बीरगा के लिए भी यही निर्णय लागू है । वह अब तक केवल गुप्तचर था। उसने जिस युक्ति से कार्य सम्पन्न किया है, उसे देखते हुए उसे तलकाडु प्रान्त के गुप्तचर दल का संचालक बनाया जाता है। देण्णमय्या बीरगा का सहायक बनकर वहीं उसके साथ रहेगा। सिंगिराज और गोष्जिगा को महासन्निधान के लौटने तक बन्धन में ही रखा जाए, उनके बारे में अन्तिम निर्णय महासन्निधान ही करेंगे। शेष दोनों पोयसल प्रजाजन को इस दुष्प्रचार के काम में सम्मिलित होने के अपराध में देश निकाले का दण्ड दिया जाता है।" न्यायपीठ के निर्णय के साथ ही गंगराज ने, पीठ के अध्यक्ष के नाते, नियुक्ति आदि सभी के बारे में यथोचित घोषणा की। इस प्रकार न्याय-विचार का कार्य समाप्त हुआ।
हुल्लमय्या तलकाडु लौट गये।
निश्चित मुहूर्त में आक्रमण शुरू हो गया। डाकरस इस अवसर पर महादण्डनायक थे। उनके साथ कुँवर बिट्टियण्णा कार्य-निर्वहण कर रहा था। वास्तव में उस वक्त डाकरस को बिट्टियण्णा के पिता की स्मृति हो आयो। एरेयंग प्रभु के अनन्य भक्त चिण्णम दण्डनाथ का बेटा ही तो था वह ! माता-पिता के अभाव में राजकुमार की तरह पालापोसा गया, भाग्यवान् जो ठहरा! डाकरस को यह समझने में अधिक समय न लगा कि चिण्यम दण्डनाथ से भी उनका यह बेटा ज्यादा तेज और बुद्धिमान है। महादण्डनायक मरियाने की तरह उसने स्वयं युद्ध-कौशल विरासत में प्राप्त किया है। अपने पुत्र मरियाने और भरत के उसी परम्परा के, उसी रक्त के होने पर भी, स्वयं से और अपने बेटों से भी अधिक कुशलता से यह युवक विट्टियण्णा कार्य-निर्वहण कर रहा है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। कुंवर बिट्टियण्णा के बारे में अपने ये विचार उसने महासन्निधान के सामने भी रखे। डाकरस की यह राय सुनकर महाराज बिट्टिदेव फूले न समाये।
"डाकरसजी, स्वर्ग में उसके माता-पिता सचमुच प्रसन्न होंगे। उसकी इच्छा के अनुसार उसे युद्धक्षेत्र में न ले जाने के कारण असन्तुष्ट हो गुस्से में आकर, स्त्री वेश में पिछले विजयोत्सव में अपूर्व नृत्य से उसने सभी को चकित कर दिया था न।"
"इस छोटी उम्र में उसकी प्रतिभा और कौशल देखकर मुझे ऐसा लग रहा है..." डाकरस और आगे नहीं कह पाये।
विट्टिदेव एक-दो क्षण चुप रहे, फिर पूछा, "क्या लग रहा है, क्यों रुक गये?" "मेरे लिए भी यह युद्ध एक बड़ी समस्या बन गया था, लेकिन इसकी कार्य
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 353