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" तुम्हें पैसा कौन देता है ?"
" तलकाडु के राजमहल में नौकर हैं वे मुझे ले चलें तो मैं दिखा दूँगा । "
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'जरूरत होगी तो वैसा करेंगे।"
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'अच्छा, ये नाटकवाले कहाँ के हैं, यह तुम्हें मालूम है ?"
"नहीं।"
" उन्हें तुमने काम सौंपा था ?"
"हाँ।"
" वे कौन हैं और कहाँ के हैं आदि बातों को जाने बिना ही काम सौंप दिया ?"
" जितना मैं ठीक समझता था उतनी परीक्षा कर लेने के बाद ही उन्हें नियुक्त किया। उनके निवास स्थान आदि के सम्बन्ध में इसलिए नहीं दर्याप्त किया कि वे घुमक्कड़ हैं। घुमक्कड़ों का घर बार कुछ नहीं होता। ये चालुक्य प्रान्त, चोल प्रान्त, पोय्सल प्रान्त वनवासी आदि प्रदेशों से परिचित हैं। मुझे भी इन प्रदेशों की काफी जानकारी हैं, इसलिए इन घुमक्कड़ों से कुछ स्थानों के बारे में पूछताछ कर ली। यह जानकर कि इन्होंने इस क्षेत्र को अच्छी तरह देखा हुआ है, मैंने इन्हें नियुक्त कर लिया।"
"उनको भी पैसा दिया ?"
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'दिया, मगर उन्होंने नहीं लिया। कहने लगे, 'साथ ही तो हैं, जब जरूरत पड़ेगी ले लेंगे। हमारा कुल ही तमाशा दिखानेवालों का रहा है। कहीं कुछ भजनकीर्तन कर लिया तो कोई-न-कोई चार कौर दे ही देगा। उतरन के कपड़े मिल जाएँगे। सोने के लिए मन्दिर है ही। हमें पैसे की कोई जरूरत नहीं। और फिर इन्हें मैंने जो काम सौंपा उसे इन्होंने अच्छी तरह निबाहा । "
" सन्तेमरल्लि के दो नाटकवालों के बारे में कहा न वे और ये दोनों अलगअलग हैं ?"
"हाँ, उन्हें मैंने पहले मुडुकुतोरे में देखा । "
" वे कहाँ है ?"
" वे इन जैसे नहीं। पैसा लेकर चले गये। परन्तु मैंने पता लगाया कि उन्होंने जहाँ-तहाँ मेरा काम किया है। "
"तुम्हारे कहने से तो मालूम पड़ता है कि तुम्हें कहीं कोई खजाना ही मिल गया
है।"
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'मुझे जितना चाहिए उतना मिल जाता था। मैंने कोई हिसाब नहीं रखा है।" 'तुम्हारे इस बयान को सुनने पर मालूम पड़ता है कि यह काम भारी पैमाने पर चला हुआ है। हमारे राज्य का अधिकारी जितना काम करता है उतना करने की जिम्मेदारी तुमने स्वीकार कर ली है। इसलिए जैसा तुमने कहा, केवल पेट भरने मात्र
पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार 347
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