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आया। इतनी बात जानने के लिए मुझे वहाँ आध घण्टा ठहरना पड़ा। 'यह कलियुग है, कलियुग...बहुत बुरा।' यो वे आपस में बातचीत कर रहे थे। सुनानेवाला एक और सुननेवाला एक। सुननेवाले ने सुनानेवाले से पूछा कि उससे यह बात किसने कही। तो उसने उन नाटक खेलनेवालों की ओर उँगली दिखाकर कहा, 'उन्होंने।' मेरे साथ
और गुप्तचर नहीं थे। होते तो उन्हें उन नाटकवालों पर सतर्क दृष्टि रखने को कहकर मैं तलकाडु जा सकता था। मैं अकेला था, इसलिए इस समाचार को पहले अपने व्यवस्था-अधिकारीजी को बताने की इच्छा से वहाँ रुका नहीं, उसी दिन जाकर उन्हें सुना दिया। उन्होंने तुरन्त तलकाडु के प्रदेश में व्यापक रूप से गुप्तचर विभाग को सक्रिय कर दिया। इन तमाशबीनों को खोजने के प्रयत्न में जहाँ-तहाँ इस षड्यन्त्र की बात सुनाई पड़ी। उन सभी जगहों में बड़े सतक होकर हमने खांजे का काम जारी रखा। इस तरफ के कुछ गाँवों में यत्र-तत्र इससे सम्बन्धित बातें तो सुनने को मिलीं। लगा, जैसे उन्हें जनता में किसी में फैलाया है। किसने फैलायीं ये बातें, इसका पता नहीं चल सका। वे वेश बदलकर इस तरह का प्रचार कर रहे हैं, ऐसा मालूम हुआ। तीन-चार पखवाड़ों तक हमने पता लगाने का काम किया। लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद मैंने ही इन नाटक वालों को पुडकुत्तोरे के बाजार में देखा और उनका पीछा किया। वहाँ, नदी के पास, एक और बूढ़ा इन नाटक वालों से कुछ बातचीत करके नदी की
ओर चला गया। मैं दूर पर था इसलिए सुन नहीं सका । परन्तु उस बूढ़े ने पूर्व की ओर इशारा करके कुछ दिखाया, यह मैंने देखा । मैंने उस तरफ जब दृष्टि डाली तो वहाँ परदे से ढकी एक गाड़ी खड़ी दिखाई पड़ी। उस गाड़ी पर और उन नाटकवालों पर सतर्क दृष्टि रखकर, अपने गुप्तचर दल के एक व्यक्ति से बाजार में मिला और उसके द्वारा ध्यवस्था अधिकारी के पास समाचार भेजा और उनसे निवेदन किया कि कुछ लोगों को ग्रामीण वेश में हमारी मदद के लिए भेजें। उसी तरह कुछ और लोगों को दूसरे वेशों में मदद के लिए बुलवाया। फिर हम कुछ लोग इकट्ठे हुए और वहाँ से अन्यत्र जानेवाली गाड़ियों के जाने के रास्तों पर दल बाँधकर पहरा देते रहे । उस गाड़ी को किसी मार्ग से गुजरते देखें तो दूसरे लोगों को तुरन्त खबर कर दी जाए, यह निर्णय किया गया। प्रत्येक व्यक्ति को यह आदेश दिया कि एक दल के लोग दूसरे दल के लोगों से परिचित हैं, ऐसा व्यवहार बिलकुल न करें। इस तरह लोगों को दलों में बॉरकर उन्हें अपने-अपने काम पर निर्दिष्ट मार्गों पर भेज दिया। बाजार की भीड़-भाड़ में हमारी ओर किसी का ध्यान नहीं गया। बिना किसी बाधा के कार्य होता रहा। अंधेरा होने पर उस परदेवाली गाड़ी के पास एक-एक कर चार-पाँच लोग इकट्ठे हुए । थोड़ी देर बाद वे दोनों नाटकवाले भी वहाँ आ गये। आते ही उन दोनों ने कहा, 'हम उस टीले के अन्दर भगवान् के दर्शन के लिए गये थे, इससे देरी हो गयी। चलिए, हम रात को तलकाड्ड में रहें । वहीं आराम करेंगे।' उत्तर में उन लोगों में से एक ने 'नहीं' कहकर
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पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 339