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हो, इस विचार से मैंने कहा । "
" पट्टमहादेवीजी का कथन ठीक है। किन-किन पर सन्देह हुआ, इस बारे में पूछताछ कर जानने की कोशिश करने से व्यर्थ ही विद्वेष फैलने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। सबसे पहले तो यह निश्चय हो जाए कि यह एक षड्यन्त्र ही है। तब ये षड्यन्त्रकारी किस तरह की कार्रवाई करके उसे सफल बनाना चाहते थे, यह बात जाननी होगी। फिर उसके मूल प्रेरक कौन हैं और इससे उनको क्या फायदा है, इसे जानना होगा। इसलिए, हुल्लमय्याजी, इस विषय में आप सप्रमाण कुछ प्रकाश डाल सकेंगे ?" गंगराज ने पूछा।
हुल्लमय्या उठे, झुककर प्रणाम किया, और कहा, "जो आज्ञा ।" फिर पटवारी से कहा, "तलकाडु के गुप्तचर दल के संचालक वेण्णमय्या को गवाह के मंच पर उपस्थित करें। "
वेष्णमय्या ने आकर शपथ ग्रहण की।
हुल्लमय्या ने कहा, "वेण्णमय्या, इस हत्या के षड्यन्त्र की बात तुम्हें पहली बार कब और कहाँ मालूम हुई ? इसका पूरा विवरण, इन लोगों को बन्दी बनाने तक क्या सब हुआ, बताएँ; कोई बात छूट न जाए और अनावश्यक भी न हो । "
" जो आज्ञा । इस षड्यन्त्र की खबर पहले-पहल सन्तेमरल्लि के बाजार में मेरे कान में पड़ी। "
"तुम वहाँ किस काम पर गये थे ?" मादिराज ने पूछा।
"युद्ध के लिए अनाज तथा धन के रूप में कर आदि का जल्दी संग्रह कर तलकाडु भेज देने का आदेश व्यवस्थाधिकारीजी ने दिया था। इसी सिलसिले में मैं सन्तेमरल्लि गया । वहीँ के पटवारी और मुनीमजी को राजमहल का आदेश सुनाया और आगे जाने वाला था। उस दिन वीथि-नाटककारों का भजन-कीर्तन चल रहा था। सहज ही उसे सुनने की अभिलाषा हुई तो मैं वहाँ जाकर खड़ा हो गया। वहाँ एक भारी दर्शक समूह था आम तौर पर जब कभी गुप्तचरी के काम पर, या राजमहल के काम पर अन्यत्र जाना होता है तब हम वेश बदलकर बिलकुल साधारण लोगों की तरह जाया करते हैं। मैं भी ऐसे ही साधारण लोगों की तरह वहाँ की भीड़ में मिल गया और उन लोगों में से एक बन गया। मेरी बगल में दो व्यक्ति आपस में धीमे स्वर में कह रहे थे, 'इस दुनिया में यह कैसा अन्याय चल रहा है! सुनने में आया है कि रानी लक्ष्मीदेवी और राजकुमार की हत्या का षड्यन्त्र रचा जा रहा है। सुनते हैं कि इस षड्यन्त्र में राजधानी के कुछ जैनियों का हाथ है। रानी श्रीवैष्णव हैं और पुत्रवती हैं, खुद महाराज ने वैष्णव धर्म स्वीकार किया है, इसलिए कल पिता के धर्म का अनुसरण करने वाला ही सिंहासन का उत्तराधिकारी बने--- ऐसा न हो जाए, इस डर से अपना रास्ता साफ बना लेने के उद्देश्य से यह षड्यन्त्र रचा जा रहा है। यही कुछ सुनने में
338 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार