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अस्वीकार किया और कहा, 'तलकाडु में क्या काम है? वहीं का काम तो बाद का है न! और फिर उस काम के लिए और ज्यादा विश्वासपात्र व्यक्ति चाहिए। ऐसे व्यक्तियों को पूरीगाली ले आने को कहा गया है। अत: अब हम भी पूरीगाली की ओर चलें।' तब इन नाटकवालों ने कहा, 'वह तो छोटा-सा गाँव है। जल्दो लोगों को पता लग जाएगा। तलकाडु बड़ी जगह है और हम अलग-अलग स्थानों में रहकर, किसी को मालुम हुए बिना, अपना काम साध सकेंगे। बड़ा शहर है।' बाकी लोग माने ही नहीं। अन्त में एक ने कहा, 'चाहो तो तुम दोनों वहाँ जाकर रह सकते हो। हम बाद में एक साथ वहाँ पहुँचेंगे, कल-परसों तक।' वे दोनों धोडी देर सोचते रहे। बाद में बोले, 'ऐसा नहीं हो सकता। रहेंगे तो हम एक साथ ही। अलग-अलग होंगे तो इस षड्यन्त्र के कार्य को रूप कैसे दे सकते हैं? जाना है तो सबको तलका जाना है या सब पूरीगाली चलें। हम अलग-अलग नहीं होंगे।' इसी तरह का निश्चय कर ये नाटकवाले भी उसी गाड़ी में, उनके साथ पूरीगाली की ओर रवाना हुए। काफी दूर गाड़ी निकल जाने के बाद मैं चुपचाप पेड़ से नीचे उतरा और उनके पीछे हो लिया।" ___ मादिराज ने पूछा, "तुम उस पेड़ पर कब चढ़ गये?"
भा अधेिर: हो * गाड़ी के पास गया। कोई नहीं था। गाड़ी एक पेड़ के नीचे छाया में खड़ी थी। मैंने चारों ओर नजर दौड़ायी, देखा वहाँ कोई नहीं। तब धीरे से मैं पेड़ पर चढ़ गया। जब मैं गाड़ी के पीछे चल रहा था तब मेरे दल के लोग जल्दी मेरे साथ शामिल हो गये। उनमें से एक को प्रबन्धक अधिकारी के पास यह खबर देकर भेजा कि हम गाड़ी के पीछे जा रहे हैं। कल शाम तक राजधानी न पहुँचे तो सेना की एक टुकड़ी को पूरीगाली को तरफ रवाना कर दें। शेष लोगों में से दो को साथ लेकर, कुछ को पूरीगाली भेज देने के लिए कहकर, बाकी को वापस भेज दिया। दूसरे दिन, पूरे दिन हमने पूरीगाली में प्रतीक्षा की। जैसा उन्होंने कहा था, कोई वहाँ नहीं आया । गाड़ी में जो थे वे भी पूरीगाली में ठहरे रहे। उसके दूसरे दिन तलकाडु से सेना की टुकड़ी आ गयी। गाड़ी में जितने लोग थे उन सभी को एक साथ गिरफ्तार करके तलकाडु ले आया गया। ये दोनों नाटकवाले इसका बहुत विरोध करते रहे । बोले, 'हप कीर्तन-भजन करनेवाले हैं, हमें क्यों बन्दी बनाते हैं ? हम थके हुए थे, इसलिए आराम से जाने के उद्देश्य से हमने इन लोगों से प्रार्थना की और इनकी गाड़ी में बैठकर चले आये। उनका यह कहना सरासर झूठ था, यह बात मैं जानता हूँ।" वेण्णमय्या बोला।
"सन्तेमरल्लिवाले इस काम में लगे थे। और ये दोनों इसमें अन्यत्र लगे थे। इस हिसाब से इनकी तीन टोलियों हुई?"
"हो सकती हैं। परन्तु इस काम में कहीं कुछ और भी हो सकते हैं ?" "ये अलग-अलग नहीं हैं। यह सब मिले हुए हैं और वे ये ही हैं, इसी बात
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340 :: पट्टयहादेवी शान्तला : भाग चार