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हो उठी हैं। मैं और राजमहल के सेवक विश्वासपात्र हैं। साथ ही, पद के दायित्व को मैं भलीभाँति समझता हूँ। मैं रानीजी और राजकुमार के लिए अपने प्राण तक अर्पण करने को सदा तैयार हूँ। मैंने भगवान् जिनदेव की कसम खाकर वचन दिया है, और सन्निधान को धीरज बंधाया है। अब न्यायपीट न्याय-विचार करके जैसा आदेश दे, वैसा करूँगा।' इतना कहकर हुल्लमय्या ने झुककर प्रणाम किया।
"आपने इस तरह का आश्वासन देकर रानीजी को दिलासा दी, सो बहुत अच्छा किया । आपका यह आश्वासन सम्पूर्ण राज-परिवार पर लागू होता है। हम इसी व्यापक अर्थ में इसे ग्रहण करते हैं। क्योंकि हम सम्पूर्ण राजपरिवार के संरक्षण के लिए ही नियुक्त हैं, राज्य का राजकाज चलाने के लिए नियुक्त हैं। इस विषय में हम किसी व्यक्ति या किसी एक धर्म मत की तरफदारी नहीं कर सकते। हम सदा न्याय के ही पक्षपाती हैं, यह बात भलीभांति जान लेनी चाहिए। हमने महामातुश्री एचलदेवीजी तथा सन्निधान एऐयंगप्रभु से यही पाठ पढ़ा है। वह सबके लिए अनुसरणीय है। अब राजधानी से तलकाडु जानेवाले मायण हेग्गडे ने क्या-क्या काम किया है, सो बताएँ।" गंगराज ने कहा।
हुल्लमय्या मंच से उत्तरे और अपनी जगह जा बैठे। मायण मंच पर आया। शपथ ग्रहण की। उसने जिनेन्द्र-भगवान् की कसम के बजाय महादेव की कसम खायी।
गंगराज ने प्रश्न किया, "मायण, तुम किसके आदेश पर तलकाडु गये?" "पट्टमहादेवीजी के आदेश पर।" "किस कारण से?
"मुझे जैसे ही यह खबर मिली कि पट्टमहादेवी और उनको सन्तान की गुप्त हत्या करने का षड्यन्त्र चला है, मैं वास्तव में डर गया। खबर मिलते ही समय को ध्यर्थ गवाना ठोक न समझकर, इस तरह की बातों में जो अधिकार स्वातन्त्र्य मुझे दिया गया था उसका उपयोग कर, अपने गुप्तचर दल में से दक्ष गुप्तचरों को भेज दिया। मैंने किसी से सलाह नहीं ली। बाद में पट्टमहादेवीजी से मिला और बात बतायी। उन्होंने कहा कि मैंने गुप्तचरों को भेजने का निर्णय जल्दबाजी में किया। उन्होंने तुरन्त किसी को भेजकर उन्हें वापस बुलाने का आदेश भी दिया। यह काम दूसरों से हो नहीं सकता था, इसलिए मुझे ही तलका? की तरफ जाना पड़ा।''
"ठीक है। तलकाडु की तरफ क्यों गये?" नागिदेवण्णा ने पूछा।
"मुझे समाचार मिला था कि इस षड्यन्त्र की जड़ तलकाडु में है इसलिए" इतना कहकर राजधानी से रवाना होने के समय से वहाँ से लौटकर आने तक क्याक्या घटनाएँ घर्टी, मोटे तौर पर उनका विवरण प्रस्तुत किया। परन्तु बड़ा सतर्क रहा। रानीजी के सन्दर्शन के अवसर पर और हुल्लमय्याजी से जो बातचीत हुई उस समय, रानी लक्ष्मीदेवी और हुल्लमय्या का यह सन्देह कि पट्टमहादेवीजी के निकटवर्ती लोग
336 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार