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के अन्दर, खासकर कुछ मुख्य ग्रामीण प्रदेशों में, गुप्तचरों को भेजा। तुरन्त रानी सन्निधान को यह बात बताकर उनकी, राजकुमार को तथा धर्मदर्शी की सुरक्षा की पूरी-पूरी व्यवस्था की।"
मादिराज ने पूछा, "तो आपको जो खबर मिली उसका यही सार था कि रानी, राजकुमार और धर्मदर्शी के प्राण-हरण की सम्भावना है?"
"जी हाँ। आम तौर पर राजमहल वालों की सुरक्षा की व्यवस्था तो रहती ही है। फिर भी वहाँ के व्यवस्थापक होने के नाते मैं चुप नहीं बैठ सकता था। सबसे पहले सुरक्षा की व्यवस्था को और अधिक चुस्त बनाना पड़ा। स्वयं मैंने ही सलाह दी कि रानी सन्निधान वहाँ की अपेक्षा राजधानी में जाकर रहें तो उत्तम हो। उन्होंने स्वीकार नहीं किया।"
"इस हत्या से किसी को कुछ लाभ होगा? किसे लाभान्वित करने के लिए यह षड्यन्त्र किया गया है, कुछ समझ सके?'' गंगराज ने पूछा।
"सीधे किसी का नाम सुनने में नहीं आया, परन्तु यह आभास मिला कि बहुत ऊँचे स्थान पर रहनेवाले जिनधर्मी लोग इस षड्यन्त्र को रचने का कारण बने हुए हैं।"
"कौन हैं वे, इसे जानने की कोशिश नहीं की?"
"कोशिश की जरूर. मगर कोई परिणाम नहीं निकला। परन्तु इस षड्यन्त्र की बात गाँव-गाँव में फैलायी जा रही है, यह मालूम हुआ। इसके कर्ता-धर्ता का पता लगाने की भी कोशिश की गयी। अन्त में नाटक करनेवाले दो व्यक्तियों और उनके साथ के पाँच-छह लोगों को बन्दी बना लिया गया। इन तमाशबीनों के मुंह से बात निकलवाकर कुछ और लोगों को बन्दी बनाया गया है। इन तमाशबीनों का प्रसार के काम में बहुत बड़ा हाथ हैं । इन लोगों ने सारे प्रान्त में घूमकर मण्डो-बाजारों में जाकर, बेचारे भोले-भाले लोगों में भय पैदा किया है। खासकर श्रीवैष्णव अत्यन्त भयग्रस्त हो उठे हैं। जब हमारे इस पोयसल राज्य में सभी धर्मियों के लिए समानता के आधार पर सुविधा है, और अब जब हमारे राजपरिवार ने सर्वधर्म-समन्वय को अपने ही परिवार में साधा है। ऐसी स्थिति में इस तरह से आतंक फैलाना आगे चलकर धर्मद्वेष का कारण बन सकता है, ऐसी गतिविधियों का होना हमारे इस राज्य पर एक कुठाराघात होगा। इसलिए अब इन अभियुक्तों से सच्चाई ही प्रकर होनी चाहिए। वहाँ हमने केवल सम्म नीति से इनसे पूछताछ की है। उससे कोई मदद नहीं मिली। अब यहाँ दण्ड के उपाय से ही इनका मुँह खुलवाना पड़ेगा। यदि उससे भी सच्चाई नहीं पता चली तो कठिन दण्ड से ही इनका मुँह खुलवाया जा सकेगा। पोयसल राजघराने की सेवा के लिए ही जब हमारा जीवन समर्पित है, तो उसका अन्त तक निर्वाह होगा। इस प्रसंग में इस न्यायपीठ के सामने मुझे एक निवेदन करना है। जब से रानी सन्निधान को इस गुप्त हत्या के षड्यन्त्र का पता चला तबसे वे अपने से ज्यादा राजकुमार के बारे में चिन्तित
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 335